ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वं होता॒ मनु॑र्हितो॒ वह्नि॑रा॒सा वि॒दुष्ट॑रः। अग्ने॒ यक्षि॑ दि॒वो विशः॑ ॥९॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । होता॑ । मनुः॑ऽहितः । वह्निः॑ । आ॒सा । वि॒दुःऽत॑रः । अग्ने॑ । यक्षि॑ । दि॒वः । विशः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं होता मनुर्हितो वह्निरासा विदुष्टरः। अग्ने यक्षि दिवो विशः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। होता। मनुःऽहितः। वह्निः। आसा। विदुःऽतरः। अग्ने। यक्षि। दिवः। विशः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा प्रजासु कथं वर्तेतेत्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने राजन् ! वह्निरिव होता मनुर्हितो विदुष्टरस्त्वमासा दिवो विशो यक्षि ॥९॥
पदार्थः
(त्वम्) (होता) दाता (मनुर्हितः) मनुष्याणां हितकारी (वह्निः) वोढा पावक इव (आसा) मुखेन (विदुष्टरः) विज्ञानवत्तमः (अग्ने) विपश्चित् (यक्षि) यज सुखं सङ्गमय (दिवः) कामयमानाः (विशः) प्रजाः ॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे प्रजाजना ! यथा पार्थिवो युष्मान् कामयते सुखं दातुमिच्छति तथा यूयमपि तं कामयित्वा तस्मै सततं सुखं प्रयच्छत ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा प्रजाओं में कैसे वर्त्ताव करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् ! राजन् (वह्निः) प्राप्त करनेवाला अग्नि जैसे वैसे (होता) दाता (मनुर्हितः) मनुष्यों के हितकारी (विदुष्टरः) अत्यन्त विज्ञानवाले (त्वम्) आप (आसा) मुख से (दिवः) कामना करती हुई (विशः) प्रजाओं को (यक्षि) सुखयुक्त करिये ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे प्रजाजनो ! जैसे राजा आप लोगों की कामना करता और सुख देने की इच्छा करता है, वैसे आप लोग भी उस राजा की कामना करके उसके लिये निरन्तर सुख दीजिये ॥९॥
विषय
मनु, वह्नि, अग्नि, सर्वाश्रय ज्ञानी प्रभु ।
भावार्थ
है ( अग्ने ) विद्वन् ! नायक ! प्रभो ! ( त्वं ) तू ( होता) सब सुखों का देने हारा, ( मनुः ) ज्ञानवान्, मननशील, मान करने योग्य, ( वह्निः ) कार्य-भार को अपने कन्धों पर लेने हारा है । तू (विदुस्तरः ) सबसे अधिक विद्वान् होने से ( आसा ) मुख से उपदेश द्वारा या मुखवत् मुख्यस्थान प्राप्त करके ( दिवः विशः ) सुख की कामना करने वाली प्रजाओं को ( यक्षि ) संगत कर और ज्ञानोपदेश और व्यवस्था प्रदान कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
विदुष्टरः
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (त्वम्) = आप (होता) = हमारे जीवन-यज्ञ के होता हैं। (मनुर्हितः) = ज्ञानशील पुरुष से हृदयदेश में स्थापित होते हैं। (आसा) = मुख से ज्ञानोपदेश द्वारा (वह्निः) = हमें भवसागर से पार ले जानेवाले हैं। (विदुष्टर:) = सर्वाधिक ज्ञानी हैं, पूर्ण ज्ञानवाले हैं। [२] हे अग्ने परमात्मन् ! हमारे साथ (दिवः विश:) = ज्ञानी पुरुषों को (यक्षि) = संगत कीजिए। उनके संग से हम भी ज्ञान को प्राप्त कर सकें।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही होता है, वे ही हमें ज्ञान को देनेवाले हैं। ज्ञानियों के संग से हमें ज्ञान प्राप्त कराते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे प्रजाजनांनो ! जसा राजा तुमची कामना करतो व सुख देण्याची इच्छा करतो तसे तुम्हीही त्या राजाची कामना करून त्याला सतत सुख द्या. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, leading light of life, ruler of the world, you are the generous performer of the yajna of existence, deeply benevolent to humanity by holy words of wisdom. O lord, bless the loving people with the light and wisdom of heaven, most enlightened as you are.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should a king deal with his subjects is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned king ! you are a liberal donor like the purifying fire, benevolent to men and a very great scholar. Therefore, by your mouth (speech or address ) by giving good teachings to men, unite the subjects with happiness as they desire it.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O subjects (people) 1 as your king loves you and desires to give happiness for you, so you should also long for him and should bestow happiness upon him constantly.
Foot Notes
(मनुर्हितः) मनुष्याणां हितकारी ये विद्वांसस्ते मनवः (Stph 8, 3, 3, 18 ) = Benevolent to men. (दिवः) कामयमानाः । दिवुधाती: कान्त्यर्थमादाय व्याख्या । = Desiring.
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