अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 14
ऋषिः - गरुत्मान्
देवता - तक्षकः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त
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कै॑राति॒का कु॑मारि॒का स॒का खन॑ति भेष॒जम्। हि॑र॒ण्ययी॑भि॒रभ्रि॑भिर्गिरी॒णामुप॒ सानु॑षु ॥
स्वर सहित पद पाठकै॒रा॒ति॒का । कु॒मा॒रि॒का । स॒का । ख॒न॒ति॒ । भे॒ष॒जम् । हि॒र॒ण्ययी॑भि: । अभ्रि॑ऽभि: । गि॒री॒णाम् । उप॑ । सानु॑षु ॥४.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
कैरातिका कुमारिका सका खनति भेषजम्। हिरण्ययीभिरभ्रिभिर्गिरीणामुप सानुषु ॥
स्वर रहित पद पाठकैरातिका । कुमारिका । सका । खनति । भेषजम् । हिरण्ययीभि: । अभ्रिऽभि: । गिरीणाम् । उप । सानुषु ॥४.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(सका) वह [प्रसिद्ध] (कैरातिका) चिरायता और (कुमारिका) कुवारपाठा, (औषधम्) ओषधि (हिरण्ययीभिः) तेजोमयी [चमकीली, उजली] (अभ्रिभिः) खुरपियों से (गिरीणाम्) पहाड़ों की (सानुषु उप) सम भूमियों के ऊपर (खनति=खन्यते) खोदी जाती है ॥१४॥
भावार्थ
वैद्य लोग दूर-दूर से मँगाकर उपकारी ओषधियों का प्रयोग करते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग विद्या प्राप्त करके मूर्खता का नाश करें ॥१४॥ यह (कैरातिका) शब्द कैरात वा किरातक अर्थात् चिरायते के लिये और (कुमारिका) शब्द कुमारी अर्थात् गुआरपाठे [घी गुआर] के लिये आया है ॥ चिरायते के संक्षिप्त नाम और गुण इस प्रकार हैं−भावप्रकाश, हरीतक्यादिवर्ग, श्लोक १४४, १४६ ॥ किराततिक्त, कैरात, कटुतिक्त और किरातक चिरायते के नाम हैं। वह सन्निपातज्वर, श्वास, कफ़, पित्त, रुधिरविकार और दाहनाशक तथा खाँसी, सूजन, प्यास, कुष्ठ, ज्वर, व्रण और कृमिरोगनाशक है ॥ गुआरपाठे के संक्षिप्त नाम और गुण−भावप्रकाश, गुडूच्यादिवर्ग, श्लोक २१३, २१४ ॥ कुमारी, गृहकन्या, कन्या, घृतकुमारिका घी कुवार के नाम हैं, घी-कुवार रेचक, शीतल, कड़वी, नेत्रों को हितकारी, रसायनरूप, मधुर, पुष्टिकारक, बलकारक, वीर्यवर्धक और वात, विषनाशक है ॥
टिप्पणी
१४−(कैरातिका) किरात−स्वार्थे कन्, अण् टाप् च। भूनिम्बः, ओषधिविशेषः (कुमारिका) कुमारी−स्वार्थे कन्, टाप् च। घृतकुमारिका, ओषधिविशेषः (सका) अव्ययसर्वनाम्नामकच् प्राक् टेः। पा० ५।३।७१। सा-अकच्। सा प्रसिद्धा (खनति) कर्मणि कर्तृप्रयोगः। खन्यते (भेषजम्) औषधम् (हिरण्ययीभिः) तेजोमयीभिः। उज्ज्वलाभिः (अभ्रिभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अभ्र गतौ-इन् तीक्षाग्रैर्लोहदण्डैः (गिरीणाम्) शैलानाम् (उप) उपरि (सानुषु) समभूमिदेशेषु ॥
विषय
कैरातिका, कुमारिका
पदार्थ
१. 'किरात' शब्द 'कु विक्षेपे तथा अत सातत्यगमने' धातुओं से बनकर निरन्तर विक्षिप्त गतिबाले का वाचक है। 'कुमार' शब्द 'कुमार क्रीडायाम्' से बनकर 'खेलते रहनेवाले' का वाचक है। इन दोनों हानिकर वृत्तियों को दूर करने का उपाय ज्ञान प्राप्त करना है। आचार्यों के समीप रहकर उनकी ज्ञानदान की क्रियाओं में ही इन वृत्तियों को दूर करने का औषध विद्यमान है, अत: कहा है कि (कैरातिका) = निरन्तर विक्षित गतिवाली (कुमारिका) = विषयों में क्रीडा को मनोवृत्तिवाली (सका) = वह कुत्सित आचरणवाली युवति (गिरीणाम्) = ज्ञान की वाणियों का उपदेश देनेवाले गुरुओं की (सानुषु) = [षणु दाने सनोति] ज्ञानदान की क्रियाओं में (भेषजम्) = अशुभ वृत्तियों के निराकरण की औषध को (हिरण्ययीभिः अभिभिः) = [अभ्र गती] ज्योतिर्मय गतियों के द्वारा (उपखनति) = समीपता से खोदती है। ज्ञान ही औषध है, उसे यह प्राप्त करती है। इस ज्ञान-औषध को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि ज्ञान-प्राप्ति के अनुकूल क्रियाओंवाली हो। यही भाव यहाँ 'हिरण्ययीभिः अधिभिः' शब्दों से व्यक्त हुआ है।
भावार्थ
ज्ञानदाता आचार्यों के समीप रहकर ज्ञान-प्राप्ति के लिए अनुकूल गतियोंवाले होते हुए हम ज्ञान प्राप्त करें, इस ज्ञान-औषध द्वारा विक्षिप्त गतियों व विषय-क्रीड़ाओं को समाप्त करनेवाले हों।
भाषार्थ
(सका कुमारिका) वह कुमारावस्था की (कैरातिकाः) कैरात जाति की सर्पिणी (भेषजम्) निज औषध को (खनति) खोदती है, (हिरण्ययीभिः) हिरण्यसदृश दान्तरूपी (अभ्रिभिः) कुद्दालियों द्वारा, (गिरीणाम्) पर्वतों की (सानुषु) चोटियों में।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह है कि कैरात नामक सर्पिणी पर्वतों की चोटियों में पैदा होने वाली ओषधियों को अपने छोटे-छोटे दान्तों द्वारा खोद निकलती हैं। वह औषध सम्भवतः सर्पविष के विनाश के लिये उपयुक्त हो। कैरात= सर्प (अथर्व० ५।१३।५)। सका = सा + अकच् (स्वार्थ)। हिरण्ययीभिः= “हिरण्यं हितरमणं भवतीति वा" (निरुक्त २।३।१०)। कैरातिका के दान्ते उस के लिये हितकर हैं, और दीखने में रमणीय है। पशु-पक्षी निज स्वाभाविक बुद्धि द्वारा निज ओषधियों को जानते और प्राप्त कर लेते है - इस के लिये देखो (अथर्व० २।२७।२; ५।१४।१; ८।७।२३, २५)।]
विषय
सर्प विज्ञान और चिकित्सा।
भावार्थ
(सका) वह (कैरातिका) किरात=गिरिवासी वर्ग की (कुमारिका) कुमारी (हिरण्ययीभिः) लोह की बनी (अभ्रिभिः) कुदालियों से या खुरपियों से (गिरीणाम्) पर्वतों के (सानुषु) शिखरों पर (भेषजम्) ओषधि रूपसे (खनति) खोदती है। अथवा—वह ‘किरात’ वर्ग की (कुमारिका) कुमारी=बन्ध्यकर्कोटकी नामक जड़ी पर्वतों के शिखरों पर लोहे की बनी कुदालियों से (खनति) खोदी जाती है। ‘कुमारिका’—बन्ध्यकर्कोटकी देवी मनोज्ञा च कुमारिका। विज्ञेया नागदमनी सर्व भूतप्रमार्दिनी॥ स्थावरादि विषद्म्नी च शस्यते सारसापने। [रा०नि०] किराताः—गिरिषु अतन्ति इति किराताः। छान्दसं गत्वं पररूपं दीर्घएकादेशश्चेति॥ अर्थात्—वनवासी, गिरि पर्वतों के वासिनी कन्याएं लोहे की कुदालियों से पर्वतों पर से औषधि खन कर लाया करें। अथवा ‘किरात-वर्ग’ की कुमारी या वन्ध्यकर्कोट की नामक ओषधि खोद कर लानी चाहिये।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। गरुत्मान् तक्षको देवता। २ त्रिपदा यवमध्या गायत्री, ३, ४ पथ्या बृहत्यौ, ८ उष्णिग्गर्भा परा त्रिष्टुप्, १२ भुरिक् गायत्री, १६ त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री, २१ ककुम्मती, २३ त्रिष्टुप्, २६ बृहती गर्भा ककुम्मती भुरिक् त्रिष्टुप्, १, ५-७, ९, ११, १३-१५, १७-२०, २२, २४, २५ अनुष्टुभः। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Snake poison cure
Meaning
That sylvan maiden of the kirata tribe digs up the herbs, white cure of snake poison, on top of the hills with tools of steel. (Kairatika and kumarika have also been interpreted as herbs for the cure of snake poison.)
Translation
The young kirāta( kairātikā), maiden (kumārikā) digs out the medicine with golden shovels on the ridges of the hills.
Translation
The young girl of the man living on mountain digs out the drug with shovels of steel on the peaks of the hills.
Translation
Kairatika or Kumarika drug is dug on the high ridges of the hills with lustrous shovels.
Footnote
Kairatika: A special drug, known in the vernacular as. विरायता Kumarika: A special drug, known in the vernacular as कुवारपाठा।
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(कैरातिका) किरात−स्वार्थे कन्, अण् टाप् च। भूनिम्बः, ओषधिविशेषः (कुमारिका) कुमारी−स्वार्थे कन्, टाप् च। घृतकुमारिका, ओषधिविशेषः (सका) अव्ययसर्वनाम्नामकच् प्राक् टेः। पा० ५।३।७१। सा-अकच्। सा प्रसिद्धा (खनति) कर्मणि कर्तृप्रयोगः। खन्यते (भेषजम्) औषधम् (हिरण्ययीभिः) तेजोमयीभिः। उज्ज्वलाभिः (अभ्रिभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अभ्र गतौ-इन् तीक्षाग्रैर्लोहदण्डैः (गिरीणाम्) शैलानाम् (उप) उपरि (सानुषु) समभूमिदेशेषु ॥
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