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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 15
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त
    15

    आयम॑ग॒न्युवा॑ भि॒षक्पृ॑श्नि॒हाप॑राजितः। स वै स्व॒जस्य॒ जम्भ॑न उ॒भयो॒र्वृश्चि॑कस्य च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒यम् । अ॒ग॒न् । युवा॑ । भि॒षक् । पृ॒श्नि॒ऽहा । अप॑राऽजित: । स: । वै । स्व॒जस्य॑ । जम्भ॑न: । उ॒भयो॑: । वृश्चि॑कस्य । च॒ ॥४.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयमगन्युवा भिषक्पृश्निहापराजितः। स वै स्वजस्य जम्भन उभयोर्वृश्चिकस्य च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अयम् । अगन् । युवा । भिषक् । पृश्निऽहा । अपराऽजित: । स: । वै । स्वजस्य । जम्भन: । उभयो: । वृश्चिकस्य । च ॥४.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 15
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (युवा) युवा (पृश्निहा) स्पर्श करनेवाले [सर्प] का नाश करनेवाला, (अपराजितः) न हारा हुआ (भिषक्) वैद्य (आ अगन्) आया है। (सः) वह (वै) निश्चय करके (उभयोः) दोनों (स्वजस्य) स्वज [लिपट जानवाले सर्पविशेष] (च) और (वृश्चिकस्य) डङ्क मारनेवाले बिच्छू का (जम्भनः) नाश करनेवाला है ॥१५॥

    भावार्थ

    बलवान् चतुर वैद्य सब प्रकार के विषैले जीवों का नाश करे ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(आ अगन्) आगतवान् (अयम्) प्रसिद्धः (भिषक्) चिकित्सकः (पृश्निहा) घृणिपृश्निपार्ष्णि०। उ० ४।५२। स्पृश स्पर्शे-नि, सलोपः+हन हिंसागत्योः-क्विप्। स्पर्शनशीलानां सर्पाणां नाशकः (अपराजितः) अनभिभूतः (सः) भिषक् (वै) निश्चयेन (स्वजस्य) म० १०। आलिङ्गनशीलस्य सर्पस्य (जम्भनः) नाशकः (वृश्चिकस्य) छेदनशीलस्य कीटस्य (च) ॥

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    विषय

    युवा, भिषक्, पृश्निहा, अपराजितः

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार आचार्यों से ज्ञान प्राप्त करनेवाला (अयम्) = यह (युवा) = बुराइयों को दूर करनेवाला व अच्छाइयों को अपने साथ मिलानेवाला (भिषक्) = पापरूप रोगों का चिकित्सक (पृश्निहा) = [पृश्नि A ray of light हन् गती] प्रकाश की किरणों को प्राप्त करनेवाला (अपराजित:) = वासनाओं से पराजित न होनेवाला युवक (आ अगन्) = आया है। २. (सः) = वह (वै) = निश्चय से 'आरपटजानेवाली व वविक्षित गति पैदा (स्वजस्य) = [स्वज आलिंगने, सु अज गतिक्षेपणयोः] चिपट जानेवाली व विक्षिप्त गति पैदा करनेवाली तृष्णावृत्ति, (वृशिकस्य च) = [व्रश्च् छेदने] और छेदन-भेदन की वृत्ति (उभयो:) = दोनों का ही (जम्भन:) = नाश करनेवाला है।

     

    भावार्थ

    ज्ञान प्राप्त करके हम 'युवा, भिषक् पृश्निहा व अपराजित' बनें। तृष्णा व छेदन भेदन की वृत्ति का विनाश करें।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह (आ अगन्) आ गया है (युवा भिषक्) नौजवान वैद्य, चिकित्सक, (पृश्निहा) पृश्नि सांप का हनन करने वाला, (अपराजितः) जो कि सर्प युद्ध में पराजित नहीं होता। (सः वै) वह निश्चय से (स्वजस्य) स्वज नामक सर्प का (च) और (वृश्चिकस्य) बिच्छू का, (उभयोः) इने दोनों का (जम्भनः) दबाने वाला है, विनाशक तथा भक्षक है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में पैद्व [न्योले] को कविता में "युवा भिषक" कहा है। जम्भनः = जमु अदने, जभी गात्रविनामे (भ्वादिः), जभि नाशने (चुरादिः)। पृश्निः = धब्बेदार, चित्रित सांप। “पृश्निः प्राश्नुत एनं वर्णः " (निरुक्त० २।४।१४)।]

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    विषय

    सर्प विज्ञान और चिकित्सा।

    भावार्थ

    (अयम्) यह (युवा) बलवान् (अपराजितः) अपराजित नामक औषध (पृश्नि-हा) पृश्नि, चितकबरे कौड़िया सांप का नाशक और (भिषक्) विष रोग को दूर करने हारा है। (सः च) वह (स्वजस्य) स्वज नामक सर्प (वृश्चिकस्य च) और वृश्चिक, बिच्छू (उभयोः) दोनों का (जम्भनः) नाशक है। ‘अपराजिता’ शब्द से निघण्टु में अश्वक्षुरक, बलामोटा, विष्णुक्रान्ता, और शुक्लांगी या शेफ़ालिका या शंखपुष्पी नामक ओषधि ली जाती हैं। इनमें—अश्वक्षुरक=गिरिकर्णिका, कटभी, श्वेत आदि नाम से कहाती है। वह चक्षुष्य, विष-दोषध्न है। शेफालिका, गिरिसिन्दुक या श्वेत सुरसा कहाती है वह भी विषघ्न है।

    टिप्पणी

    बलामोटा—विजया नागदमनी, निःशेषविषनाशिनी। विषमोहप्रशमनी महा-योगेश्वरीति च॥ विष्णुकान्ता भी विषघ्न है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। गरुत्मान् तक्षको देवता। २ त्रिपदा यवमध्या गायत्री, ३, ४ पथ्या बृहत्यौ, ८ उष्णिग्गर्भा परा त्रिष्टुप्, १२ भुरिक् गायत्री, १६ त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री, २१ ककुम्मती, २३ त्रिष्टुप्, २६ बृहती गर्भा ककुम्मती भुरिक् त्रिष्टुप्, १, ५-७, ९, ११, १३-१५, १७-२०, २२, २४, २५ अनुष्टुभः। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Snake poison cure

    Meaning

    Look, there comes the young physician, the tireless man, destroyer of various snakes. He is the destroyer of Svaja snakes as well as of scorpions.

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    Translation

    Here comes this youthful physician, killer of the speckled snakes (prsnihā) and always unconquered. He is the slayer of both, the contractor (svaja) and the stinger (Vršcika).

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    Translation

    This strong unconquered drug names as Aparajita is the remedy of Prishni, the snake having spots on its body. This is also the killer of the scorpion and Svaja both.

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    Translation

    Hither hath come the young unconquered physician, who slays the speckled snake. He verily demolishes adder and scorpion; both of them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(आ अगन्) आगतवान् (अयम्) प्रसिद्धः (भिषक्) चिकित्सकः (पृश्निहा) घृणिपृश्निपार्ष्णि०। उ० ४।५२। स्पृश स्पर्शे-नि, सलोपः+हन हिंसागत्योः-क्विप्। स्पर्शनशीलानां सर्पाणां नाशकः (अपराजितः) अनभिभूतः (सः) भिषक् (वै) निश्चयेन (स्वजस्य) म० १०। आलिङ्गनशीलस्य सर्पस्य (जम्भनः) नाशकः (वृश्चिकस्य) छेदनशीलस्य कीटस्य (च) ॥

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