अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
ऋषिः - गरुत्मान्
देवता - तक्षकः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त
24
पैद्व॒ प्रेहि॑ प्रथ॒मोऽनु॑ त्वा व॒यमेम॑सि। अही॒न्व्यस्यतात्प॒थो येन॑ स्मा व॒यमे॒मसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपैद्व॑ । प्र । इ॒हि॒ । प्र॒थ॒म: । अनु॑ । त्वा॒ । व॒यम् । आ । ई॒म॒सि॒ । अही॑न् । वि । अ॒स्य॒ता॒त् । प॒थ: । येन॑ । स्म॒ । व॒यम् । आ॒ऽई॒मसि॑ ॥४.६॥
स्वर रहित मन्त्र
पैद्व प्रेहि प्रथमोऽनु त्वा वयमेमसि। अहीन्व्यस्यतात्पथो येन स्मा वयमेमसि ॥
स्वर रहित पद पाठपैद्व । प्र । इहि । प्रथम: । अनु । त्वा । वयम् । आ । ईमसि । अहीन् । वि । अस्यतात् । पथ: । येन । स्म । वयम् । आऽईमसि ॥४.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(पैद्व) हे शीघ्रगामी [पुरुष !] (प्रथमः) आगे होकर (प्र इहि) बढ़ा चल, (त्वा अनु) तेरे पीछे-पीछे (वयम्) हम (आ ईमसि) आते हैं। (अहीन्) महाहिंसक [साँपों] को (पथः) उस मार्ग से (वि अस्यतात्) मार गिरा (येन) जिस से (वयम्) हम (स्म) ही (आ-ईमसि) आते हैं ॥६॥
भावार्थ
अग्रगामी शूर को शत्रुओं के नाश करने में सब लोग सहाय करें ॥६॥
टिप्पणी
६−(पैद्वः) म० ५। हे शीघ्रगामिन् (प्र इहि) अग्रे गच्छ (प्रथमः) प्रधानः (अनु) अनुसृत्य (त्वा) (वयम्) (आ-ईमसि) ई गतौ-लट्, मसो मसि। ईमः। आगच्छामः (अहीन्) म० १। महाहिंसकान्। सर्पान् (वि) विशेषेण (अस्यतात्) अस्य। क्षिप (पथः) मार्गात् (येन) यथा (स्म) अवधारणे (वयम्, आ ईमसि) ॥
विषय
नेता का कर्तव्य
पदार्थ
१. (पैद्व) = हे गतिशील पुरुष! तू (प्रेहि) = प्रकृष्ट गतिवाला बन। (प्रथम:) = शक्तियों के विस्तारवाला हो [प्रथ विस्तारे]। (त्वा अनु वयं आ ईमसि) = तेरे पीछे-पीछे हम भी सब ओर गतिवाले हों। उत्तम नेता स्वयं गतिवाला होता हुआ अनुयायियों के लिए पथ-प्रदर्शक बनता है। २. हे पैद! आप (पथ:) = उस मार्ग से (हीन् व्यस्यतात्) = हिंसक तत्त्वों को दूर फेंकें-दूर करें, (येन) = जिस मार्ग से (वयं आ ईमसि स्म) = हम गतिवाले होते हैं। हमारे नेता हमारे मार्गों को विघ्न = बाधाशून्य करें।
भावार्थ
हमारा नेतृत्व गतिशील व्यक्तियों के हाथ में हो। वे हमारे मार्ग से हिंसक तत्त्वों को दूर करें। हमारे लिए उनका जीवन पथ-प्रदर्शक हो।
भाषार्थ
(पैद्वः) हे पैद्वः ! तू (प्रथमः) पहिले (प्रेहि) आगे-आगे चल, (त्वा अनु) तेरे पीछे (वयम्) हम (एमसि) आते हैं। तू (अहीन्) सांपों को (पथः) मार्ग से (व्यस्यतात्) पृथक् हटाता जा (येन) जिस मार्ग द्वारा (वयम्) हम (एमसि स्म) आते हैं।
टिप्पणी
[जिन स्थानों में सांपों का बाहुल्य हो वहां जाना पड़े तो न्योले को अपने साथ ले जाने का विधान हुआ है। वहां न्योले को छोड़ देने पर सांप भाग जाते हैं, और मार्ग भय रहित हो जाता है। स्म = वाक्यालंकारें]।
विषय
सर्प विज्ञान और चिकित्सा।
भावार्थ
हे (पैद्व) पैद्व=अश्व नामक ओषधे ! (प्रथमः) प्रथम तू (प्र-इहि) आगे आगे चल और (त्वा अनु) तेरे पीछे (वयम्) हम (एमसि) चलें (येन) जिस मार्ग से (वयम्) हम (एमसि) चलें उस (पथः) मार्ग से (अहीन्) सापों को (वि-अस्यतात्) दूर भगा दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। गरुत्मान् तक्षको देवता। २ त्रिपदा यवमध्या गायत्री, ३, ४ पथ्या बृहत्यौ, ८ उष्णिग्गर्भा परा त्रिष्टुप्, १२ भुरिक् गायत्री, १६ त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री, २१ ककुम्मती, २३ त्रिष्टुप्, २६ बृहती गर्भा ककुम्मती भुरिक् त्रिष्टुप्, १, ५-७, ९, ११, १३-१५, १७-२०, २२, २४, २५ अनुष्टुभः। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Snake poison cure
Meaning
O Paidva, go in advance and we would follow you. Throw off the snakes from the paths by which we go on the business of life.
Translation
O paidva, first you go forward, then we shall follow you. Throw the serpents off the path, along which we have to travel.
Translation
Let this Paidva plant go onward and we follow it and let it cast away the Serpents from the pathway whereupon we tread.
Translation
Go onward, Paidva! go thou first: we follow after thee. Cast thou aside the serpents from the pathway whereupon we tread.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(पैद्वः) म० ५। हे शीघ्रगामिन् (प्र इहि) अग्रे गच्छ (प्रथमः) प्रधानः (अनु) अनुसृत्य (त्वा) (वयम्) (आ-ईमसि) ई गतौ-लट्, मसो मसि। ईमः। आगच्छामः (अहीन्) म० १। महाहिंसकान्। सर्पान् (वि) विशेषेण (अस्यतात्) अस्य। क्षिप (पथः) मार्गात् (येन) यथा (स्म) अवधारणे (वयम्, आ ईमसि) ॥
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