अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 16/ मन्त्र 12
इ॒दम॑कर्म॒ नमो॑ अभ्रि॒याय॒ यः पू॒र्वीरन्वा॒नोन॑वीति। बृह॒स्पतिः॒ स हि गोभिः॒ सो अश्वैः॒ स वी॒रेभिः॒ स नृभि॑र्नो॒ वयो॑ धात् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । अ॒क॒र्म॒ । नम॑: । अ॒भ्रि॒याय॑ । य: । पूर्वी॑: । अनु॑ । आ॒ऽनोन॑वीति ॥ बृह॒स्पति॑: । स: । हि । गोभि॑: । स: । अश्वै॑: । स: । वी॒रेभि॑: । स: । नृऽभि॑: । न॒: । वय॑: । धा॒त् ।१६.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
इदमकर्म नमो अभ्रियाय यः पूर्वीरन्वानोनवीति। बृहस्पतिः स हि गोभिः सो अश्वैः स वीरेभिः स नृभिर्नो वयो धात् ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । अकर्म । नम: । अभ्रियाय । य: । पूर्वी: । अनु । आऽनोनवीति ॥ बृहस्पति: । स: । हि । गोभि: । स: । अश्वै: । स: । वीरेभि: । स: । नृऽभि: । न: । वय: । धात् ।१६.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 16; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
हम उपासकों ने (इदं नमः) यह नमस्कार (अभ्रियाय) मेघों के भी स्वामी “बृहस्पति” तथा महाब्रह्माण्ड के स्वामी परमेश्वर के प्रति (अकर्म) किया है। (यः) जो परमेश्वर कि (पूर्वीः) पूर्वकालों से चली आई अनादि ऋचाओं का (अनु) निरन्तर प्रत्येक सृष्टि के आदि में (नोनवीति) बार-बार स्तवन करता है, उपदेश करता है। (सः) वह (बृहस्पतिः हि) बृहस्पति ही (गोभिः) गौओं द्वारा, (सः अश्वैः) वह ही अश्वों द्वारा, (सः वीरेभिः) वह ही वीर सन्तानों द्वारा, (सः नृभिः) वह ही नेताओं द्वारा (नः) हमें (वयः) जीवन, दीर्घायु तथा अन्न (आधात्) प्रदान करता है।
टिप्पणी -
[वयः=अन्नम् (निघं০ २.७)।] [सूक्त के मन्त्र १, तथा १२ में ‘बृहस्पति’ पद द्वारा परमेश्वर का वर्णन हुआ है। और मध्य के मन्त्रों में ‘बृहस्पति’ पद द्वारा सेनापति तथा वायु का भी वर्णन हुआ है।]