यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 41
ऋषिः - प्रस्कण्व ऋषिः
देवता - सूर्य्यो देवता
छन्दः - भूरिक् आर्षी गायत्री,
स्वरः - षड्जः
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उदु॒ त्यं जा॒तवे॑दसं दे॒वं व॑हन्ति के॒तवः॑। दृ॒शे विश्वा॑य॒ सूर्य॒ꣳ स्वाहा॑॥४१॥
स्वर सहित पद पाठउत्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। त्यम्। जा॒तवे॑दस॒मिति॑ जा॒तऽवे॑दसम्। दे॒वम्। व॒ह॒न्ति॒। के॒तवः॑। दृ॒शे। विश्वा॑य। सूर्य्य॑म्। स्वाहा॑ ॥४१॥
स्वर रहित मन्त्र
उदु त्यञ्जातवेदसन्देवं वहन्ति केतवः । दृशे विश्वाय सूर्यँ स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
उत्। ऊँऽइत्यूँ। त्यम्। जातवेदसमिति जातऽवेदसम्। देवम्। वहन्ति। केतवः। दृशे। विश्वाय। सूर्य्यम्। स्वाहा॥४१॥
विषय - अब सूर्य के दृष्टान्त से ईश्वर के गुणों का उपदेश किया जाता है ॥
भाषार्थ -
जैसे किरणें (विश्वाय) सब पदार्थों को (दृशे) देखने के लिए (जातवेदसम्) उत्पन्न हुये सब भूतों को जानने वाले ईश्वर अथवा उत्पन्न मूर्तिमान् पदार्थों को प्राप्त होने वाले [सूर्य] (त्यम्) उस (सूर्यम्) ग्रह-वेत्ताओं से प्राप्त करने योग्य और विद्वानों से बतलाने योग्य (देवम्) दिव्य गुणों से युक्त सूर्य को [उ] वितर्कपूर्वक (उद्+वहन्ति) प्राप्त कराती हैं, वैसे विद्वान् पुरुष के (केतवः) श्रेष्ठ ज्ञान (स्वाहा ) सत्य वेदवाणी से नाना मनुष्यों को परब्रह्म की प्राप्ति कराते हैं ।। ७ । ४१ ।।
भावार्थ - जैसे प्राणियों के लिये किरणें सूर्य को प्रकाशित करती हैं वैसे मनुष्य का प्रकृष्ट ज्ञान ईश्वर को प्राप्त कराता है ॥ ७ । ४१ ।।
प्रमाणार्थ -
(जातवेदसम्) यास्कमुनि ने निरु० (७ । १९) में 'जातवेदाः' शब्द का निर्वाचन इस प्रकार किया है–'जातवेदा:' को 'जातवेदाः’क्यों कहते हैं ? इसलिये कि यह समस्त प्रसिद्ध पदार्थों को जानता है, अथवा समस्त प्राणी इसे जानते हैं, अथवा प्रत्येक पदार्थों में यह विद्यमान है। यह विद्या और प्रज्ञा वाला है; क्योंकि प्रसिद्ध होते ही इसने सब पशुओं (दृश्यमान पदार्थों) को प्राप्त कर लिया इसलिये यह 'जातवेदाः' कहलाया है"। (केतवः) 'केतु' शब्द निघं० (३ । ९) में प्रज्ञा नामों में पढ़ा है। (दृशे ) यह पद 'दृशे विख्ये च' (अ० ३।४ । ११) इस सूत्र से निपातित है । यास्कमुनि ने निरु० (१२ । १५) इस मन्त्र की व्याख्या इस प्रकार की है "केतु (प्रज्ञा) के समान रश्मियाँ सब प्राणियों की दर्शनशक्ति के लिये सूर्य को ऊपर उठाती हैं, आदित्य से भिन्न ऐसा किसे कहा जा सकता है"। इस मन्त्र की व्याख्या शत० (४।६।२ । २) में की गई है ।। ७ । ४१ ।।
भाष्यसार - सूर्य के दृष्टान्त से ईश्वर के गुणों का उपदेश--सब मूर्त्तिमान् पदार्थों को प्राप्त, ग्रह-वेत्ताओं से प्राप्त करने योग्य, दिव्यगुणों से युक्त सूर्य को जैसे उसकी किरणें उसे प्रकाशित करती हैं वैसे विद्वान् मनुष्य का प्रकृष्ट ज्ञान पर-ब्रह्म को प्राप्त कराता है। जो पर-ब्रह्म सब उत्पन्न प्राणियों को जानने वाला है, विद्वान् पुरुषों से जानने योग्य है, और दिव्यगुणों से युक्त है ॥ ७ । ४१ ।।
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