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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 8
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    बृह॑स्पते सवितर्बो॒धयै॑न॒ꣳसꣳशि॑तं चित्सन्त॒रा सꣳशि॑शाधि।व॒र्धयै॑नं मह॒ते सौभ॑गाय॒ विश्व॑ऽएन॒मनु॑ मदन्तु दे॒वाः॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॑स्पते। स॒वि॒तः॒। बो॒धय॑। ए॒न॒म्। सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। चि॒त्। स॒न्त॒रामिति॑ समऽत॒राम्। सम्। शि॒शा॒धि॒। व॒र्धय॑। ए॒न॒म्। म॒ह॒ते। सौभ॑गाय। विश्वे॑। ए॒न॒म्। अनु॑। म॒द॒न्तु॒। दे॒वाः ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पते सवितर्बाधयैनँ सँशितञ्चित्सन्तराँ सँशिशाधि । वर्धयैनम्महते सौभगाय विश्वऽएनमनु मदन्तु देवाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पते। सवितः। बोधय। एनम्। सꣳशितमिति सम्ऽशितम्। चित्। सन्तरामिति समऽतराम्। सम्। शिशाधि। वर्धय। एनम्। महते। सौभगाय। विश्वे। एनम्। अनु। मदन्तु। देवाः॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 8
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (बृहस्पते) महान सज्जनांचे रक्षक (सवितः) आणि विदय व ऐश्‍वर्य या दोन्हीनी संपन्न तसेच विद्येचे उपदेश महोदय, आपण (एनम्) या (आमच्या) राजाला (संशितम्) तीव्र बुद्धिमान करा व विचारक स्वभावाचा करून (बोधय) याला चैतन्यमय करा. तसेच (सम्, शिशाधि) त्याला सम्यक् प्रकारे उपदेश द्या, याला मार्गदर्शन करा. (चित्त) आणि (सन्तराम्) प्रजेलादेखील अधिकाधिक शिक्षात्मक उपदेश द्या. (एनम्) या राजाला (महते) (सौभगत्वाय) पराभूत उत्तम ऐश्‍वर्य प्राप्त होण्यासाठी (वर्धय) प्रगतिशील वा उन्नत बनवा (तसेच ते सर्व करा की ज्यायोगे) (विश्‍वे) सर्व (देवाः) सुशील सभ्य विद्वान (एनम्) या राजाला (अनु, मदन्तु) अनुकूल होतील व त्यावर प्रसन्न होतील. ॥8॥

    भावार्थ - भावार्थ - राजसभेला उपदेश करणारा जो महोपदेशक असतो, त्याने राजाला दुर्व्यसनांपासून दूर ठेवावे, त्याला शीलवंत करावे आणि राजाला अधिकाधिक ऐश्‍वर्यप्राप्तीसाठी प्रवृत्त करीत रहावे ॥8॥

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