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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 56
    ऋषिः - कण्व ऋषिः देवता - ब्रह्मणस्पतिर्देवता छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः
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    उत्ति॑ष्ठ ब्रह्मणस्पते देव॒यन्त॑स्त्वेमहे।उप॒ प्र य॑न्तु म॒रुतः॑ सु॒दान॑व॒ऽइन्द्र॑ प्रा॒शूर्भ॑वा॒ सचा॑॥५६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। ति॒ष्ठ॒। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। दे॒व॒यन्त॒ इति॑ देव॒ऽयन्तः॑। त्वा॒। ई॒म॒हे॒ ॥ उप॑। प्र। य॒न्तु॒। म॒रुतः॑। सु॒दा॑नव॒ इति॑ सु॒ऽदान॑वः। इन्द्र॑। प्रा॒शूः। भ॒व॒। सचा॑ ॥५६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे । उपप्रयन्तु मरुतः सुदानवऽइन्द्र प्राशूर्भवा सचा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। तिष्ठ। ब्रह्मणः। पते। देवयन्त इति देवऽयन्तः। त्वा। ईमहे॥ उप। प्र। यन्तु। मरुतः। सुदानव इति सुऽदानवः। इन्द्र। प्राशूः। भव। सचा॥५६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 56
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে (ব্রহ্মণঃ) ধনের (পতে) রক্ষক (ইন্দ্র) ঐশ্বর্য্যকারক বিদ্বন্ ! (দেবয়ন্তঃ) দিব্য বিদ্বান্দিগের কামনা করিয়া আমরা যে (ত্বা) আপনার (ঈমহে) যাচনা করি, যে আপনাকে (সুদানবঃ) সুন্দর দানদাতা (মরুতঃ) মনুষ্য (উপ, প্র, য়ন্তু) সমীপ হইতে প্রযত্ন সহ প্রাপ্ত হয়, সুতরাং আপনি (উৎ, তিষ্ঠ) উঠুন এবং (সচা) সত্যের সম্পর্ক দ্বারা (প্রাশূঃ) উত্তম ভোগকারী (ভব) হউন ॥ ৫৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! যাহারা বিদ্যার কামনা করিয়া আপনার আশ্রয় গ্রহণ করিবে, তাহাদের অর্থ বিদ্যা দেওয়ার জন্য আপনি উদ্যত হউন ॥ ৫৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উত্তি॑ষ্ঠ ব্রহ্মণস্পতে দেব॒য়ন্ত॑স্ত্বেমহে ।
    উপ॒ প্র য়॑ন্তু ম॒রুতঃ॑ সু॒দান॑ব॒ऽইন্দ্র॑ প্রা॒শূর্ভ॑বা॒ সচা॑ ॥ ৫৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উত্তিষ্ঠেত্যস্য কণ্ব ঋষিঃ । ব্রহ্মণস্পতির্দেবতা । নিচৃদ্বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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