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  • यजुर्वेद - अध्याय 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    वी॒तिहो॑त्रं त्वा कवे द्यु॒मन्त॒ꣳ समि॑धीमहि। अग्ने॑ बृ॒हन्त॑मध्व॒रे॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वी॒तिहो॑त्र॒मिति॑ वी॒तिऽहो॑त्रम्। त्वा॒। क॒वे॒। द्यु॒मन्त॒मिति॑ द्यु॒ऽमन्त॒म्। सम्। इ॒धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। बृ॒हन्त॑म्। अ॒ध्व॒रे ॥४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वीतिहोत्रन्त्वा कवे द्युमन्तँ समिधीमहि । अग्ने बृहन्तमध्वरे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वीतिहोत्रमिति वीतिऽहोत्रम्। त्वा। कवे। द्युमन्तमिति द्युऽमन्तम्। सम्। इधीमहि। अग्ने। बृहन्तम्। अध्वरे॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 2; मन्त्र » 4
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    पदार्थ -

    गत मन्त्र की समाप्ति ‘ईडितः’ शब्द पर है, जिसका अर्थ है स्तुतिवाला। वही स्तुति प्रस्तुत मन्त्र में चलती है—हे ( कवे ) = [ कौति सर्वा विद्याः, कु शब्दे ] सब विद्याओं का उपदेश देनेवाले, ( अग्ने ) = सबकी उन्नति के साधक प्रभो! हम ( अध्वरे ) = अपने इस हिंसा व कुटिलताशून्य जीवन में [ ध्वरः हिंसा व कुटिलता ] ( त्वा ) = आपको ( समिधीमहि ) = दीप्त करने का प्रयत्न करते हैं, जो आप [ क ] ( वीतिहोत्रम् ) = [ वीति = प्रकाश, होत्रा = वाक् ] प्रकाशमय वाणीवाले हैं। आपकी यह वेदवाणी हमारे जीवन के अन्धकार को नष्ट करके उन्हें प्रकाशमय बनाती है, [ ख ] ( द्युमन्तम् ) =  ज्योतिर्मय हैं। ‘आदित्यवर्णम्’ सूर्य के समान आपका वर्ण है। इस सूर्य के समान ही क्या ? ( दिवि सूर्यसहस्रस्य ) = हज़ारों सूर्यों की समुदित ज्योति के समान आपकी ज्योति है। वस्तुतः आपकी ज्योति से ही तो यह सब पिण्ड ज्योतिर्मय हो रहे हैं। तस्य भासा सर्वमिदं विभाति, [ ग ] ( बृहन्तम् ) = आप बृहत् हैं [ बृहि वृद्धौ ], सदा वर्धमान है। आप विशाल-से-विशाल हैं। सारे प्राणियों के आप निवास-स्थान हैं। सर्वत्र समरूप से आप अवस्थित हैं।

    इस प्रकार आपका स्तवन करता हुआ मैं भी प्रकाशमय वाणीवाला [ वीतिहोत्र ] बनूँ। मेरी वाणी सदा लोगों के ज्ञान की वृद्धि का हेतु बने। मेरा जीवन प्रकाशमय हो [ द्युमान् ], मेरा हृदय विशाल हो। आपकी वेदवाणी का प्रसार करता हुआ मैं भी कवि बनूँ। निरन्तर उन्नति-पथ पर चलता हुआ और औरों को आगे ले-चलता हुआ मैं भी आपकी भाँति अग्नि बनूँ।

    भावार्थ -

    भावार्थ — प्रभु-स्तवन हमारे सामने इस ऊँचे लक्ष्य को रक्खे कि हम ‘प्रकाशमय वाणीवाले, ज्योतिर्मय जीवनवाले और विशाल हृदय’ बनें। हम आगे बढ़नेवाले ‘अग्नि’ हों और विद्या का प्रकाश करनेवाले ‘कवि’ हों।

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