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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाज ऋषिः देवता - सविता गृहपतिर्देवता छन्दः - विराट ब्राह्मी अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
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    उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि सावि॒त्रोऽसि चनो॒धाश्च॑नो॒धाऽअ॑सि॒ चनो॒ मयि॑ धेहि। जिन्व॑ य॒ज्ञं जिन्व॑ य॒ज्ञप॑तिं॒ भगा॑य दे॒वाय॑ त्वा सवि॒त्रे॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒या॒मगृही॑त॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। सा॒वि॒त्रः। अ॒सि॒। च॒नो॒धा इति॑ चनः॒ऽधाः। च॒नो॒धा इति॑ चनः॒ऽधाः। अ॒सि॒। चनः॑। मयि॑। धे॒हि॒। जिन्व॑। य॒ज्ञम्। जिन्व॑। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। भगा॑य। दे॒वाय॑। त्वा॒। स॒वि॒त्रे ॥७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपयामगृहीतो सि सावित्रो सि चनोधाश्चनोधा असि चनो मयि धेहि । जिन्व यज्ञञ्जिन्व यज्ञपतिं भगाय देवाय त्वा सवित्रे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। सावित्रः। असि। चनोधा इति चनःऽधाः। चनोधा इति चनःऽधाः। असि। चनः। मयि। धेहि। जिन्व। यज्ञम्। जिन्व। यज्ञपतिमिति यज्ञऽपतिम्। भगाय। देवाय। त्वा। सवित्रे॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 7
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    पदार्थ -

    १. पत्नी पति से कहती है कि— आप ( उपयामगृहीतः असि ) = उपासना के द्वारा यम-नियमों के धारण करनेवाले हैं। 

    २. आप ( सावित्रः असि ) = सविता देव के उपासक हैं, अर्थात् आपका जीवन सूर्य की भाँति नियमित है और परिणामतः आप सूर्य की भाँति ही चमकनेवाले हैं। अथवा आप [ सू-प्रसव ] उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाले हैं। 

    ३. ( चनोधाः ) = उत्तम अन्न को धारण करनेवाले और ( चनोधाः ) = निश्चय से उत्तम अन्न को धारण करनेवाले ( असि ) = हैं [ अभ्यासे भूयांसमर्थं मन्यन्ते—नि० १०।४२ ]।( चनो मयि धेहि ) = मुझमें अन्न धारण कीजिए। ‘अन्न प्राप्त कराना घर में सबके पालन-पोषण के लिए आवश्यक सामग्री जुटाना’ यह पाणिग्रहण के मन्त्रों में ममेयमस्तु पोष्या इन शब्दों में तीसरा व्रत लिया जाता है। पति अन्न-प्रापण के द्वारा ही रक्षा करता है। 

    ४. ( यज्ञं जिन्व ) = आप यज्ञ को भी प्राप्त हों। केवल खाने-पीने के लिए थोड़े ही कमाना है, यज्ञों के लिए भी तो कमाना है। ( यज्ञपतिं जिन्व ) = इन यज्ञों के द्वारा यज्ञों के पति प्रभु को आप प्रीणित करनेवाले बनें। वस्तुतः यज्ञो वै विष्णुः वे प्रभु यज्ञरूप हैं। हम उस यज्ञरूप प्रभु की यज्ञों के द्वारा ही उपासना कर पाते हैं। 

    ५. मैं ( त्वा ) = आपको ( भगाय ) = ऐवर्श्य के लिए प्राप्त होती हूँ। आप घर के ऐश्वर्य को बढ़ानेवाले होओ। ( देवाय त्वा ) = मैं आपको दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिए स्वीकार करती हूँ। आपके कारण घर में देवत्व की वृद्धि होगी। मैं ( सवित्रे ) = उत्तम सन्तानों को जन्म देने के लिए आपका स्वीकार करती हूँ [ षू प्रसव ]। आपके द्वारा मैं उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाली बन सकूँगी।

    भावार्थ -

    भावार्थ — पति इतना कमाये कि घर का व्यय भी चले और यज्ञ-यागादि के लिए भी खर्च निकलता रहे। घर में ऐश्वर्य की वृद्धि हो, देवत्व का विकास हो और उत्तम सन्तानें हों।

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