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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 13
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अध्यापकोपदेशकौ देवते छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    लोमा॑नि॒ प्रय॑ति॒र्मम॒ त्वङ् म॒ऽआन॑ति॒राग॑तिः। मा॒सं म॒ऽउप॑नति॒र्वस्वस्थि॑ म॒ज्जा म॒ऽआन॑तिः॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लोमा॑नि। प्रय॑ति॒रिति॒ प्रऽय॑तिः। मम॑। त्वक्। मे॒। आन॑ति॒रि॒त्याऽन॑तिः। आग॑ति॒रित्याऽग॑तिः। मा॒सम्। मे॒। उप॑नति॒रित्युप॑ऽनतिः। वसु॑। अस्थि॑। म॒ज्जा। मे॒। आन॑ति॒रित्याऽन॑तिः ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लोमानि प्रयतिर्मम त्वङ्मऽआनतिरागतिः । माँसम्मऽउपनतिर्वस्वस्थि मज्जा मऽआनतिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    लोमानि। प्रयतिरिति प्रऽयतिः। मम। त्वक्। मे। आनतिरित्याऽनतिः। आगतिरित्याऽगतिः। मासम्। मे। उपनतिरित्युपऽनतिः। वसु। अस्िथ। मज्जा। मे। आनतिरित्याऽनतिः॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 13
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    भावार्थ -
    राजा के शरीर की राज शक्तियों से तुलना । (प्रयतिः) राष्ट्र में समस्त जनों का प्रयत्न, श्रम या उत्तम शासन (मम) मेरे शरीर के (लोमानि) लोमों के समान, राष्ट्र की रक्षा के साधन हैं । (आनतिः) शत्रुओं और दुष्ट पुरुषों को झुकाने वाली शक्ति और (आगतिः) मेरी आज्ञा पाते ही उनका आना, ये दोनों शक्तियां ( मे त्वक ) मेरी त्वचा के समान राष्ट्र की रक्षा करने वाली हैं । (उपनतिः) लोगों को आदर से झुकाने वाली शक्ति ( मे मांसम् ) मेरे शरीर के मांस के समान राष्ट्र-शरीर को स्वस्थ समृद्ध होने के समान है (वसु अस्थि) मेरी प्रजा को बसाने का सामर्थ्य और ऐश्वर्य मेरे शरीर में अस्थि के समान राष्ट्र-शरीर के दृढ़ आधार के समान है । (मे आनतिः) प्रेम से, लोगों का मेरे गुणों के समक्ष झुकाने वाला बल (मे) मेरे शरीर विद्यमान (मज्जा) मज्जा के समान, राष्ट्र- शरीर में सबको सुख, शान्ति देने वाला है । शत० १२ । ८ । ३ । ३१ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अनुष्टुप् । गांधारः । अध्यापकोपदेशकौ, लोमत्वङ्मांसास्थिमज्जानो लिंगोक्ताः ॥

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