Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 34
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    2

    यऽइ॒मे द्यावा॑पृथि॒वी जनि॑त्री रू॒पैरपि॑ꣳश॒द् भुव॑नानि॒ विश्वा॑।तम॒द्य हो॑तरिषि॒तो यजी॑यान् दे॒वं त्वष्टा॑रमि॒ह य॑क्षि वि॒द्वान्॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। इ॒मेऽइती॒मे। द्यावा॑पृथि॒वीऽइति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। जनि॑त्री॒ऽइति॒ जनि॑त्री। रू॒पैः। अपि॑ꣳशत्। भुव॑नानि। विश्वा॑। तम्। अ॒द्य। हो॒तः॒। इ॒षि॒तः। यजी॑यान्। दे॒वम्। त्वष्टा॑रम्। इ॒ह। य॒क्षि॒। वि॒द्वान् ॥३४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यऽइमे द्यावापृथिवी जनित्री रूपैरपिँशद्भुवनानि विश्वा । तमद्य होतरिषितो यजीयान्देवन्त्वष्टारमिह यक्षि विद्वान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। इमेऽइतीमे। द्यावापृथिवीऽइति द्यावापृथिवी। जनित्रीऽइति जनित्री। रूपैः। अपिꣳशत्। भुवनानि। विश्वा। तम्। अद्य। होतः। इषितः। यजीयान्। देवम्। त्वष्टारम्। इह। यक्षि। विद्वान्॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 34
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (হোতঃ) গ্রহণকারী ব্যক্তি! (য়ঃ) যে (য়জীয়ান্) অতি সমাগমকারী (ইষিতঃ) প্রেরিত (বিদ্বান্) সকল দিক দিয়া বিদ্যা প্রাপ্ত বিদ্বান্ যেমন ঈশ্বর (ইহ) এই ব্যবহারে (রূপৈঃ) চিত্রবিচিত্র আকার দ্বারা (ইমে) এই (জনিত্রী) বহু কার্য্যকে উৎপন্ন কারিণী (দ্যাবাপৃথিবী) বিদ্যুৎ ও পৃথিবী আদি (বিশ্বা) সমস্ত (ভুবনানি) ভুবনসকলকে (অপিংশৎ) অবয়বরূপ করে সেইরূপ (তম্) সেই (ত্বষ্টারম্) সংযোগ-বিয়োগ অর্থাৎ প্রলয় সৃষ্টিকারী (দেবম্) ঈশ্বরের (অদ্য) আজ তুমি (য়ক্ষি) সঙ্গ কর, ইহার দ্বারা সৎকার করিবার যোগ্য ॥ ৩৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগকে এই সৃষ্টিতে পরমাত্মার রচনার বৈশিষ্য্যগুলি জানিয়া সেইরূপ শিল্পবিদ্যার প্রয়োগ করা উচিত ॥ ৩৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়ऽই॒মে দ্যাবা॑পৃথি॒বী জনি॑ত্রী রূ॒পৈরপি॑ꣳশ॒দ্ ভুব॑নানি॒ বিশ্বা॑ ।
    তম॒দ্য হো॑তরিষি॒তো য়জী॑য়ান্ দে॒বং ত্বষ্টা॑রমি॒হ য়॑ক্ষি বি॒দ্বান্ ॥ ৩৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য় ইম ইত্যস্য জমদগ্নির্ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top