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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 57
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - वादयितारो वीरा देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    आमूर॑ज प्र॒त्याव॑र्त्तये॒माः के॑तु॒मद् दु॑न्दु॒भिर्वा॑वदीति।समश्व॑पर्णा॒श्चर॑न्ति नो॒ नरो॒ऽस्माक॑मिन्द्र र॒थिनो॑ जयन्तु॥५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। अ॒मूः। अ॒ज॒। प्र॒त्याव॑र्त्त॒येति॑ प्रति॒ऽआव॑र्त्तय। इ॒माः। के॒तु॒मदिति॑ केतु॒मत्। दु॒न्दु॒भिः। वा॒व॒दी॒ति॒। सम्। अ॑श्वपर्णा॒ इत्यश्व॑ऽपर्णाः। चर॑न्ति। नः॒। नरः॑। अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। र॒थिनः॑। ज॒य॒न्तु॒ ॥५७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आमूरज प्रत्यावर्तयेमाः केतुमद्दुन्दुभिर्वावदीति । समश्वपर्णाश्चरन्ति नो नरो स्माकमिन्द्र रथिनो जयन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। अमूः। अज। प्रत्यावर्त्तयेति प्रतिऽआवर्त्तय। इमाः। केतुमदिति केतुमत्। दुन्दुभिः। वावदीति। सम्। अश्वपर्णा इत्यश्वऽपर्णाः। चरन्ति। नः। नरः। अस्माकम्। इन्द्र। रथिनः। जयन्तु॥५७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 57
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ– হে (ইন্দ্র) পরম ঐশ্বর্য্যযুক্ত রাজপুরুষ! আপনি (অমূঃ) সেই শত্রুসেনাদিগকে (আ, অজ) সম্যক্ প্রকার দূরে নিক্ষিপ্ত করুন, (কেতুমৎ) ধবজাযুক্ত (ইমাঃ) এই নিজের সেনাদিগকে (আবর্ত্তয়) ফিরাইয়া আনুন যেমন (দুন্দুভিঃ) দুন্দুভি (বাবদীতি) অত্যন্ত শব্দ করে সেইরূপ (নঃ) আমাদেরকে (অশ্বপর্ণাঃ) অশ্বদিগের যন্মধ্যে পালন হয়, সেই সেনা (সম, চরন্তি) সম্যক্ বিচরণ করে । যাহারা (অস্মাকম্) আমাদের (রথিনঃ) প্রশংসিত রথে আরোহণ করা বীর (নরঃ) নায়কগণ শত্রুদিগকে (জয়ন্তু) জিতিবে তাহারা সৎকারকে প্রাপ্ত হউক ॥ ৫৭ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব রাজপুরুষ শত্রুদিগের সেনাকে নিবৃত্ত করিতে এবং নিজ সেনাকে যুদ্ধ করাইতে সক্ষম হয় তাহারা শত্রুদিগকে জিতিতে পারে ॥ ৫৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - আऽমূর॑জ প্র॒ত্যাব॑র্ত্তয়ে॒মাঃ কে॑তু॒মদ্ দু॑ন্দু॒ভির্বা॑বদীতি ।
    সমশ্ব॑পর্ণা॒শ্চর॑ন্তি নো॒ নরো॒ऽস্মাক॑মিন্দ্র র॒থিনো॑ জয়ন্তু ॥ ৫৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - আমূরিত্যস্য ভারদ্বাজ ঋষিঃ । বাদয়িতারো বীরা দেবতাঃ । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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