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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 12
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - धान्यदा आत्मा देवता छन्दः - भुरिगतिशक्वरी स्वरः - पञ्चमः
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    व्री॒हय॑श्च मे॒ यवा॑श्च मे॒ माषा॑श्च मे॒ तिला॑श्च मे मु॒द्गाश्च॑ मे॒ खल्वा॑श्च मे प्रि॒यङ्ग॑वश्च॒ मेऽण॑वश्च मे श्या॒माक॑ाश्च मे नी॒वारा॑श्च मे गो॒धूमा॑श्च मे म॒सूरा॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व्री॒हयः॑। च॒। मे॒। यवाः॑। च॒। मे॒। माषाः॑। च॒। मे॒। तिलाः॑। च॒। मे॒। मु॒द्गाः। च॒। मे॒। खल्वाः॑। च॒। मे॒। प्रि॒यङ्ग॑वः। च॒। मे॒। अण॑वः। च॒। मे॒। श्या॒माकाः॑। च॒। मे॒। नी॒वाराः॑। च॒। मे॒। गो॒धूमाः॑। च॒। मे॒। म॒सूराः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्रीहयश्च मे यवाश्च मे माषाश्च मे तिलाश्च मे मुद्राश्च मे खल्वाश्च मे प्रियङ्गवश्च मे णवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    व्रीहयः। च। मे। यवाः। च। मे। माषाः। च। मे। तिलाः। च। मे। मुद्गाः। च। मे। खल्वाः। च। मे। प्रियङ्गवः। च। मे। अणवः। च। मे। श्यामाकाः। च। मे। नीवाराः। च। मे। गोधूमाः। च। मे। मसूराः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 12
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र की समाप्ति 'मति व सुमति' पर हुई थी। उस 'मति व सुमति' का सम्पादन करने के लिए मैं व्रीहि और यव आदि उत्तम ओषधियों का ही सेवन करूँ। मेरा भोजन वानस्पतिक ही हो। वनस्पति का अर्थ ही 'वन' ज्ञानरश्मियों का 'पति' रक्षा करनेवाला है। मांसाहार मनुष्य-स्वभाव को कुछ क्रूर बनानेवाला है। यह मनुष्य को स्वार्थी - सा बना देता है, अतः कहते हैं कि- (व्रीहयः च मे) = मेरा भोजन चावल हों । (यवाः च मे) = मेरा भोजन जौ हों। २. (माषाः च मे) = मैं माषों उड़द का प्रयोग करूँ और (तिलाः च मे) = तिलों को अपनाऊँ। ३. (मुद्गाः च मे) = मूँग मेरे भोजन का अङ्ग हों और (खल्वाः च मे) = चणों को मैं भोजन बनाऊँ। ४. (प्रियङ्गवः च मे) = कगु मेरा भोजन हो और (अणवश्च मे) = चीनक मेरा भोजनाङ्ग बने। ५. (श्यामाकाः च मे) = ग्राम्य तृणधानों [कोदों] को मैं अपनाऊँ, (नीवाराश्च मे) = मैं आरण्य तृणधानों का सेवन करूँ। ६. (गोधूमाः च मे) = मैं गेहूँ को अपनाऊँ तथा (मसूराः च मे) = मसूर का सेवन करूँ। (यज्ञेन) = प्रभु- सम्पर्क से मेरे ये सब वानस्पतिक भोजन (कल्पन्ताम्) = मुझे सामर्थ्य सम्पन्न बनानेवाले हों। मैं सदा शाकाहारी बना रहकर सशक्त बनूँ। अपनी ज्ञानरश्मियों को बढ़ाऊँ तथा प्रभु के समीप पहुँचनेवाला बनूँ।

    भावार्थ - भावार्थ- मेरा भोजन वनस्पति ही हो।

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