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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 5
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - स्वराट् शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    स॒त्यं च॑ मे श्र॒द्धा च॑ मे॒ जग॑च्च मे॒ धनं॑ च मे॒ विश्वं॑ च मे॒ मह॑श्च मे क्री॒डा च॑ मे॒ मोद॑श्च मे जा॒तं च॑ मे जनि॒ष्यमा॑णं च मे सू॒क्तं च॑ मे सुकृ॒तं च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्यम्। च॒। मे॒। श्र॒द्धा। च॒। मे॒। जग॑त्। च॒। मे॒। धन॑म्। च॒। मे॒। विश्व॑म्। च॒। मे॒। महः॑। च॒। मे॒। क्री॒डा। च॒। मे॒। मोदः॑। च॒। मे॒। जा॒तम्। च॒। मे॒। ज॒नि॒ष्यमा॑णम्। च॒। मे॒। सू॒क्तमिति॑ सुऽउ॒क्तम्। च॒। मे॒। सु॒कृ॒तमिति॑ सुऽकृ॒तम्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्यञ्च मे श्रद्धा च मे जगच्च मे धनञ्च मे विश्वञ्च मे महश्च मे क्रीडा च मे मोदश्च मे जातञ्च मे जनिष्यमाणञ्च मे सूक्तञ्च मे सुकृतञ्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सत्यम्। च। मे। श्रद्धा। च। मे। जगत्। च। मे। धनम्। च। मे। विश्वम्। च। मे। महः। च। मे। क्रीडा। च। मे। मोदः। च। मे। जातम्। च। मे। जनिष्यमाणम्। च। मे। सूक्तमिति सुऽउक्तम्। च। मे। सुकृतमिति सुऽकृतम्। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र की ज्येष्ठता के लिए आवश्यक है कि (सत्यं च मे) = मुझमें यथार्थ भाषण हो, (श्रद्धा च मे) = मेरा परलोक व प्रभु में विश्वास हो। २. इनके साथ भौतिक ज्येष्ठता के लिए (जगत् च मे) = जंगम गवादि धन मुझे प्राप्त हो, (धनं च मे) = और सुवर्णादि धातुएँ मुझे प्राप्त हों। ३. (विश्वं च मे) = वह सबमें प्रविष्ट प्रभु मेरा हो और (महः च मे) = प्रभु-सम्पर्क से प्राप्त होनेवाली तेजस्विता [मह: दीप्ति] मेरी हो। ४. महस्वाला बनकर मैं (क्रीडा च मे) = संसार के सब घटनाचक्र को क्रीडा के रूप में देखनेवाला बनूँ। (मोदः च मे) = और क्रीडा-दर्शन से उत्पन्न आनन्द को सदा प्राप्त करूँ। ५. (जातं च मे) मेरा भूतकाल में भी विकास हुआ हो और (जनिष्यमाणं च मे) = भविष्यत् में भी मेरा विकास हो । ६. (सूक्तं च मे) = मेरे मुख से सदा (सु-उक्त) = मधुर शब्द उच्चरित हों और (सुकृतं च मे) = मेरा पुण्य (यज्ञेन) = प्रभु के संग से (कल्पन्ताम्) = सम्पन्न हो ।

    भावार्थ - भावार्थ- मैं सत्य व श्रद्धादि से अपने को परिपूर्ण करूँ ।

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