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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 19
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - मनुष्यो देवता छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अनु॑ त्वा॒ रथो॒ऽअनु॒ मर्यो॑ऽअर्व॒न्ननु॒ गावोऽनु॒ भगः॑ क॒नीना॑म्।अनु॒ व्राता॑स॒स्तव॑ स॒ख्यमी॑यु॒रनु॑ दे॒वा म॑मिरे वी॒र्यं ते॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑। त्वा॒। रथः॑। अनु॑। मर्यः॑। अ॒र्व॒न्। अनु॑। गावः॑। अनु॑। भगः॑। क॒नीना॑म्। अनु॑। व्राता॑सः। तव॑। स॒ख्यम्। ई॒युः॒। अनु॑। दे॒वाः। म॒मि॒रे॒। वी॒र्य᳖म्। ते॒ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु त्वा रथोऽअनु मर्याऽअर्वन्ननु गावोनु भगः कनीनाम् । अनु व्रातासस्तव सख्यमीयुरनु देवा ममिरे वीर्यन्ते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अनु। त्वा। रथः। अनु। मर्यः। अर्वन्। अनु। गावः। अनु। भगः। कनीनाम्। अनु। व्रातासः। तव। सख्यम्। ईयुः। अनु। देवाः। ममिरे। वीर्यम्। ते॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र के अनुसार जब हम प्रभु के उत्तम रूप को देखते हैं और ओषधि-वनस्पतियों का ही सेवन करते हैं तब प्रभु कहते हैं कि (रथः त्वा अनु) = यह शरीररूप रथ तेरे अनुकूल होता है, (मर्यः अनु) = सामान्य मनुष्य तेरे अनुकूल होते हैं। २. हे अर्वन् बुराइयों का संहार करनेवाले विद्वन्! (गावः अनु) = सब इन्द्रियाँ तेरे अनुकूल होती है, अथवा गौएँ तेरे अनुकूल होती है, तुझे स्वास्थ्यप्रद दूध देनेवाली होती है। (कनीनाम् भगः अनु) = कन्याओं का सौभाग्य तेरे अनुकूल होता है, अर्थात् तेरी पुत्रियाँ व पुत्रवधुएँ तेरे घर के सौभाग्य को बढ़ानेवाली होती हैं। तेरी पुत्रियाँ जहाँ भी जाती हैं वे तेरे घर की कीर्ति का कारण बनती हैं और तेरे घर में आई कन्याएँ भी तेरे घर की शोभा का कारण बनती हैं। ३. (व्रातास:) = मनुष्यों के गण व समाज (अनु) = तेरे अनुकूल होते हैं और ये सब (तव सख्यम् ईयुः) = तेरी मित्रता को प्राप्त करते है। ५. (देवा:) = सूर्यादि सब प्राकृतिक देव भी (अनु) = तेरे अनुकूल होते हैं और (ते वीर्यं ममिरे) = तेरी शक्ति का निर्माण करते हैं। यह पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश आदि सब प्राकृतिक दिव्य शक्तियाँ तेरे अनुकूल होकर तुझे सशक्त बनाती हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- गतमन्त्र के अनुसार जीवन बनाने पर हमें सारे संसार की अनुकूलता प्राप्त होती है।

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