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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 58
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - भुरिगत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः
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    आ॒ग्ने॒यः कृ॒ष्णग्री॑वः सारस्व॒ती मे॒षी ब॒भ्रुः सौ॒म्यः पौ॒ष्णः श्या॒मः शि॑तिपृ॒ष्ठो बा॑र्हस्प॒त्यः शि॒ल्पो वै॑श्वदे॒वऽऐ॒न्द्रोऽरु॒णो मा॑रु॒तः क॒ल्माष॑ऽऐन्द्रा॒ग्नः स॑ꣳहि॒तोऽधोरा॑मः सावि॒त्रो वा॑रु॒णः कृ॒ष्णऽएक॑शितिपा॒त्पेत्वः॑॥५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ग्ने॒यः। कृ॒ष्णग्री॑व॒ इति॑ कृ॒ष्णऽग्री॑वः। सा॒र॒स्व॒ती। मे॒षी। ब॒भ्रुः। सौ॒म्यः। पौ॒ष्णः। श्या॒मः। शि॒ति॒पृ॒ष्ठ इति॑ शितिऽपृ॒ष्ठः ॥ बा॒र्ह॒स्प॒त्यः। शि॒ल्पः। वै॒श्व॒दे॒व इति॑ वैश्वऽदे॒वः। ऐ॒न्द्रः। अ॒रु॒णः। मा॒रु॒तः। क॒ल्माषः॑। ऐ॒न्द्रा॒ग्नः। स॒ꣳहि॒त इति॑ सम्ऽहि॒तः। अ॒धोरा॑म॒ इत्य॒धःऽरा॑मः। सा॒वि॒त्रः। वा॒रु॒णः। कृ॒ष्णः। एक॑शितिपा॒दित्येक॑ऽशितिपात्। पेत्वः॑ ॥५८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आग्नेयः कृष्णग्रीवः सारस्वती मेषी बभ्रुः सौम्यः पौष्णः श्यामः शितिपृष्ठो बार्हत्यः शिल्पो वैश्वदेवऽऐन्द्रोरुणो मारुतः कल्माषऽऐन्द्राग्नः सँहितोधोरामः सावित्रो वारुणः कृष्णऽएकशितिपात्पेत्वः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आग्नेयः। कृष्णग्रीव इति कृष्णऽग्रीवः। सारस्वती। मेषी। बभ्रुः। सौम्यः। पौष्णः। श्यामः। शितिपृष्ठ इति शितिऽपृष्ठः॥ बार्हस्पत्यः। शिल्पः। वैश्वदेव इति वैश्वऽदेवः। ऐन्द्रः। अरुणः। मारुतः। कल्माषः। ऐन्द्राग्नः। सꣳहित इति सम्ऽहितः। अधोराम इत्यधःऽरामः। सावित्रः। वारुणः। कृष्णः। एकशितिपादित्येकऽशितिपात्। पेत्वः॥५८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 58
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र के अनुसार विजयी राष्ट्र में राष्ट्र के भिन्न-भिन्न विभाग भिन्न-भिन्न पशुओं को अपना सूचक चिह्न बनाएँ, इस बात का संकेत करते हुए कहते हैं कि (कृष्णाग्रीवः) = काले गलेवाला पशु (आग्नेय:) = अग्नि देवतावाला, अर्थात् अग्नि के उत्तम गुणों से युक्त है, अतः अग्निनामक राष्ट्र का अग्रणी पुरुष कृष्णग्रीव पशु को अपना सूचक चिह्न बनाये । २. (मेषी) = भेड़ (सारस्वती) = सरस्वती के गुणोंवाली है। सरस्वती देवता का सूचक चिह्न 'मेषी' को बनाया जाए। आजकल भेड़ मूर्खता का प्रतीक समझी जाती है, परन्तु इस वेदवाक्य में वह ज्ञान का प्रतीक होने योग्य समझी गई है। ३. (बभ्रुः) = पिङ्गल वर्णवाला पशु [धुमेला पशु - द०] (सौम्यः) = चन्द्रमा के गुणोंवाला है, सोम देवतावाला है। ४. (श्याम:) = श्याम रंग से युक्त पशु (पौष्ण:) = पुष्टि आदि गुणोंवाला है, पूषा देवता से सम्बद्ध है, पूषा के गुणधर्मों से युक्त है। गौवों में काली गौ सम्पन्न क्षीरतमा मानी जाती है। ५. (शितिपृष्ठ:) = श्याम पृष्ठवाला पशु (बार्हस्पत्यः) = बृहस्पति देवतावाला है, बृहस्पति के गुणधर्मों से युक्त है । ६.( शिल्पः) = विचित्र वर्णवाला पशु (वैश्वदेवः) = विश्वदेवे देवतावाला है, सब विद्वानों के गुणोंवाला है। इसके अनेक रंग विद्वान् की अनेक विद्याओं को संकेतित करते हैं। विद्वान् को भी विविध विद्याओं से विभूषित कण्ठवाला 'कल्माषग्रीव' होना ही चाहिए versatile । ७. (अरुण:) = लाल वर्णवाला (ऐन्द्रः) = इन्द्र देवतावाला है, सूर्य के गुणोंवाला है। ८. (कल्माषः) = खाखी वर्णयुक्त पशु (मारुतः) = वायुदेवता-सम्बन्धी है, अध्यात्म में इसका सम्बन्ध प्राणों से है। यह प्राण शरीर में अनेक चित्र (अद्भुत) कार्य करते हैं । ९. (संहित:) = दृढ़ अङ्गोंवाला पशु (ऐन्द्राग्नः) = इन्द्र व अग्नि देवतावाला है। इन्द्र व अग्नि का प्रतीक है, राष्ट्र में (इन्द्र) = सेनापति (च अग्नि) = सभापति दोनों को ही बड़े दृढ़ अङ्गोंवाला होना चाहिए । १०. (अधोरामः) = निचले प्रदेश में श्वेत वर्णवाला पशु (सावित्रः) = सवितृ देवतावाला है। जैसे सूर्य यहाँ अधः प्रदेश में भूमण्डल पर प्रकाश फैला देता है, उसी प्रकार राष्ट्र में सविता नामक शिक्षा सचिव ने राष्ट्र में शिक्षा के विस्तार का ध्यान करना है। ११. (एकशितिपत्) = एक पाँव जिसका सफ़ेद है और (पेत्व:) = बड़ा वेगवान्, पतनशील पशु है, वह (वारुणः) = वरुणदेवता से सम्बद्ध है। वरुण के पाश ('छिनन्तु सर्वे अनृतं वदन्तं सत्यवाद्यति तं सृजन्तु'), अनृतवादी को जहाँ बाँधते हैं वहाँ सत्यवादी को मुक्त करते हैं। एवं, एक पाँव काला है तो दूसरा सफ़ेद। एक सफेद पाँववाला व दूसरा कृष्ण पाँववाला पशु यही संकेत कर रहा है।

    भावार्थ - भावार्थ - राष्ट्र में समुचित प्रेरणा [व्यवस्था] के लिए सब अधिकारी अपने देवताओं के गुणधर्मोंवाले पशुओं को अपना सूचक चिह्न बनाएँ ।

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