यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 49
ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः
देवता - वीरा देवताः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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ऋजी॑ते॒ परि॑ वृङ्धि॒ नोऽश्मा॑ भवतु नस्त॒नूः।सोमो॒ऽअधि॑ ब्रवीतु॒ नोऽदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु॥४९॥
स्वर सहित पद पाठऋजी॑ते। परि॑। वृ॒ङ्धि॒। नः॒। अश्मा॑। भ॒व॒तु॒। नः॒। त॒नू। सोमः॑। अधि॑। ब्र॒वी॒तु॒। नः॒। अदि॑तिः। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒ ॥४९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋजीते परिवृङ्धि नोश्मा भवतु नस्तनूः । सोमोऽअधि ब्रवीतु नो दितिः शर्म यच्छतु ॥
स्वर रहित पद पाठ
ऋजीते। परि। वृङ्धि। नः। अश्मा। भवतु। नः। तनू। सोमः। अधि। ब्रवीतु। नः। अदितिः। शर्म। यच्छतु॥४९॥
विषय - ऋजुगमन [सरल व्यवहार]
पदार्थ -
१. गतमन्त्र के अनुसार 'शत्रुओं के भय से सुरक्षित राष्ट्र में हम कैसे बनें' इस बात का वर्णन करते हुए कहते है कि हे (ऋजीते) = [ऋजुः इति सरल गमन] सरल गति ! तू (न:) = हमें (परिवृङग्धि) = सब ओर से शरीर में रोगादि से और मन में चिन्ताओं व ईर्ष्याद्वेषादि से छुड़ा। सुरक्षित राष्ट्र में सब प्रजाएँ सरल व्यवहार को अपनाकर अपने को रोगों व दोषों से मुक्त करें। २. (नः तनूः) = हमारे शरीर रोग-दोष से मुक्त होकर (अश्मा भवतु) = पत्थर के समान सुदृढ़ हों। छोटे-मोटे ऋतु-विकार उससे टकराकर प्रभावशून्य हो जाएँ। ३. (सोमः) = शान्त-विनीत स्वभाववाला आचार्य (नः) = हमें (अधिब्रवीतु) = अधिक्येन उपदेश दे। इनके उपदेश से ही हमारे जीवन में सरलता स्थिर रहेगी और हम कुटिलता से बचे रहेंगे। ४. (अदितिः) = अखण्डन, अर्थात् स्वास्थ्य अथवा अदीना देवमाता-दिव्य गुणों का निर्माण करनेवाली अदीनता की भावना (शर्म) = शान्ति व सुख (यच्छतु) = दे।
भावार्थ - भावार्थ- हमारा व्यवहार सरल, कपटशून्य हो। शरीर पाषाणवत् दृढ़ हो । सौम्य आचार्यों से हमें ज्ञान प्राप्त हो। अदीनता व दिव्यता हमें सुखी व शान्त करे।
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