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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 57
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रष्टा देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    कत्य॑स्य वि॒ष्ठाः कत्य॒क्षरा॑णि॒ कति॒ होमा॑सः कति॒धा समि॑द्धः।य॒ज्ञस्य॑ त्वा वि॒दथा॑ पृच्छ॒मत्र॒ कति॒ होता॑रऽऋतु॒शो य॑जन्ति॥५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कति॑। अ॒स्य॒। वि॒ष्ठाः। वि॒स्था इति॑ वि॒ऽस्थाः। कति॑। अ॒क्षरा॑णि। कति॑। होमा॑सः। क॒ति॒धा। समि॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धः। य॒ज्ञस्य॑। त्वा॒। वि॒दथा॑। पृ॒च्छ॒म्। अत्र॑। कति॑। होता॑रः। ऋ॒तु॒श इत्यृ॑तु॒ऽशः। य॒ज॒न्ति॒ ॥५७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कत्यस्य विष्ठाः कत्यक्षराणि कति होमासः कतिधा समिद्धः । यज्ञस्य त्वा विदथा पृच्छमत्र कति होतारऽऋतुशो यजन्ति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कति। अस्य। विष्ठाः। विस्था इति विऽस्थाः। कति। अक्षराणि। कति। होमासः। कतिधा। समिद्ध इति सम्ऽइद्धः। यज्ञस्य। त्वा। विदथा। पृच्छम्। अत्र। कति। होतारः। ऋतुश इत्यृतुऽशः। यजन्ति॥५७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 57
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    भावार्थ -
    (अस्य) इस जगत् के (कृति विष्ठाः) कितने विशेष आश्रय हैं जिन पर यह स्थित है ? (कति अक्षराणि) कितने अक्षर, अविनाशी पदार्थ हैं जो कभी नष्ट नहीं होते ? ( कति होमासः) कितने 'होम' अर्थात् कारण पदार्थों के संयोगविभाग हैं ? (कतिधा समिद्धः) यह कितने प्रकारों से प्रकाशित एवं प्रेरित है, अथवा इसमें कितने प्रकाशक, प्रेरक तत्व हैं ? हे विद्वन् ! (यज्ञस्य विदथा) इन 'यज्ञ' विषयक विज्ञानों को मैं (त्वा) तुझसे (पृच्छम् ) पूछता हूँ और यह भी बतला कि ( कति होतारः) कितने होता (ऋतुशः) ऋतुओं के अनुकूल (यजन्ति) यज्ञ कर रहे हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - देवता । प्रश्नः । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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