यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 62
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - समाधाता देवता
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - धैवतः
1
इ॒यं वेदिः॒ परो॒ऽअन्तः॑ पृथि॒व्याऽअ॒यं य॒ज्ञो भुव॑नस्य॒ नाभिः॑।अ॒यꣳ सोमो॒ वृष्णो॒ऽअश्व॑स्य॒ रेतो॑ ब्र॒ह्मायं वा॒चः प॑र॒मं व्यो॑म॥६२॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम्। वेदिः॑। परः॑। अन्तः॑। पृ॒थि॒व्याः। अ॒यम्। य॒ज्ञः। भुव॑नस्य। नाभिः॑। अ॒यम्। सोमः॑। वृष्णः॑। अश्व॑स्य। रेतः॑। ब्र॒ह्मा। अ॒यम्। वा॒चः। प॒र॒मम्। व्यो॒मेति॒ विऽओ॑म ॥६२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इयँवेदिः परोऽअन्तः पृथिव्याऽअयँयज्ञो यत्र भुवनस्य नाभिः । अयँ सोमो वृष्णोऽअश्वस्य रेतः ब्रह्मायँवाचः परमँव्योम ॥
स्वर रहित पद पाठ
इयम्। वेदिः। परः। अन्तः। पृथिव्याः। अयम्। यज्ञः। भुवनस्य। नाभिः। अयम्। सोमः। वृष्णः। अश्वस्य। रेतः। ब्रह्मा। अयम्। वाचः। परमम्। व्योमेति विऽओम॥६२॥
विषय - पृथिवी के पर अन्त, भुवन की नाभि, अश्व के रेतस और वाक के परम व्योम सम्बन्धी प्रश्न और उनके उत्तर और रहस्य का स्पष्टीकरण ।
भावार्थ -
उत्तर - ( इयं वेदिः) यह 'वेदि' ( पृथिव्याः परः अन्तः ) पृथिवी का परम अन्त है, सर्व श्रेष्ठ अंश है, (अयं यज्ञः) यह यज्ञ सर्व 'पूजनीय परमेश्वर (भुवनस्य नाभिः) समस्त संसार का परम आश्रय है। (अयं सोमः) यह 'सोम' सबका प्रेरक सूर्य, वायु, अग्नि, विद्यत् आदि पदार्थ समूह ही (वृष्णः) महान् (अश्वस्य) व्यापक परमेश्वर का ( रेतः) परम वीर्य, सर्वोत्पादक सामर्थ्य है । (अयं ब्रह्मा) यह ब्रह्मवेत्ता, वेदज्ञ विद्वान् ब्रह्मा ही (वाचः) वाणी का (परमम् व्योम) परम रक्षास्थान है ।
ये सब प्रश्नोत्तर राष्ट्र के पक्ष में भी नीचे लिखे प्रकार से हैं। जैसे-
मं [४७-४८] ब्रह्म, बृहत् राष्ट्रपति, ब्रह्मवेत्ता सूर्य के समान प्रकाशक है । 'द्यौः' राजसभा समुद्र के समान अगाध ज्ञान भण्डार है । 'इन्द्र', राजा पृथिवी से महान् है । 'गौ', पृथिवी या वाणी (लॉ), का कोई परिमाण नहीं | मं० [४९-५०] राजा तीनों पदों में विद्यमान है, राजा, शासकजन और प्रजा उनमें सब राष्ट्र स्थित हैं । पृथिवी और ( द्यौः ) राजसभा को प्राप्त करके राजा एक अङ्ग से सिंहासन पर विराजता है । मं० [ ५१-५२] पुरुष, सबका पालक राजा पांचों जनों में स्थित है और पांचों जन उसमें आश्रित हैं । [५६-५७] राष्ट्रवासी पुरुष चार प्रकार के स्वभाव वाले हैं एक 'अजा' स्वभाव के हैं जो सब स्थानों से धन प्राप्त करते हैं दूसरे 'श्वावित्' जो कर्म करके धन प्राप्त करते हैं। तीसरे 'शश' हैं जो उच्चति की उछाल भरते हैं, चौथे 'अहि' जो पथिक या पर हैं ।
(५७-५८) ६ अमात्य राष्ट्र के ६ आधार हैं। सैकड़ों अक्षर, अक्षयकोष हैं । अन्नप्राप्ति होम है । प्रज्ञा, उत्साह, सेना ये तीन समिधाएं हैं । ६ अमाध्य और सातवां राजा या राज्य के सात अंग होता हैं । [ ५९-६० समस्त राष्ट्र का प्रबन्धक, राजा, राजसभा और शासक, सबका मूल महान् सूर्य राजा है । आह्लादक राजा का उत्पत्ति स्थान यह राष्ट्र है । [ ६१-६२ ] राज्याभिषेक की वेदी सर्वोत्कृष्ट स्थान है, राज्य प्रबन्ध राष्ट्र का प्रबन्ध है । सोम, ऐश्वर्य या राष्ट्र स्वतः राजा का बल है । ब्रह्मा वेदज्ञ विद्वान्, वाणी अर्थात् समस्त आज्ञाओं का उत्कृष्ट स्थान है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - समाधाता देवता । प्रतिवचनम् । विराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
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