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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 39
    ऋषिः - आसुरिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भूरिक् बृहती, स्वरः - मध्यमः
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    अ॒यम॒ग्निर्गृ॒हप॑ति॒र्गार्ह॑पत्यः प्र॒जाया॑ वसु॒वित्त॑मः। अग्ने॑ गृहपते॒ऽभि द्यु॒म्नम॒भि सह॒ऽआय॑च्छस्व॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम्। अ॒ग्निः। गृ॒हप॑ति॒रिति॑ गृ॒हऽप॑तिः। गार्ह॑पत्य॒ इति॒ गार्ह॑ऽपत्यः॑। प्र॒जाया॒ इति॑ प्र॒जायाः॑। व॒सु॒वित्त॑म॒ इति॑ वसु॒वित्ऽत॑मः। अग्ने॑। गृ॒ह॒प॒त॒ इति॑ गृहऽपते। अ॒भि। द्यु॒म्नम्। अ॒भि। सहः॑। आ। य॒च्छ॒स्व॒ ॥३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयमग्निर्गृहपतिर्गार्हपत्यः प्रजाया वसुवित्तमः । अग्ने गृहपते भि द्युम्नमभि सह आ यच्छस्व ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। अग्निः। गृहपतिरिति गृहऽपतिः। गार्हपत्य इति गार्हऽपत्यः। प्रजाया इति प्रजायाः। वसुवित्तम इति वसुवित्ऽतमः। अग्ने। गृहपत इति गृहऽपते। अभि। द्युम्नम्। अभि। सहः। आ। यच्छस्व॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 39
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    भावार्थ -

    ( अयम् ) यह ( अग्निः ) हमारा अग्रणी, नेता, राजा, (गृहपति:) हमारे घरों का पालक होने से गृहस्वामी के समान और (गार्हपत्यः) गार्हपत्य अग्नि के समान समस्त गृहस्वामियों से संयुक्त है अथवा राष्ट्र- रूप गृह का स्वामी है । वह ( प्रजायाः ) समस्त प्रजा के ( वसुवित्तमः समस्त ऐश्वर्य प्राप्त करने वालों में सब से श्रेष्ठ है । हे ( अग्ने ) अग्रणी ! ज्ञानवनू ! हे (गृहपते ) गृह के स्वामिन्! (द्युम्नम् सहः, अभि, आयच्छस्व ) तू बल और अन्न और धन ऐश्वर्य को सब प्रकार से नियत कर और हमें प्राप्त करा । राजा अन्य समस्त गृहस्थ प्रजा के संयुक्तशक्ति से स्थापित होकर स्वयं भी गृहस्थ रहे । वह भी सब के समान गृहस्थ, सब का स्वाभी, सब के लिये अन्न और धन का आयोजक हो । ईश्वर पक्ष में वह सबके गृहों का स्वामी, उपास्य है, वह भी महान् गृहपति है । वह सबको अन्न, बल दे । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    आसुरिरादित्यश्च ऋषी । अग्निर्देवता । भुरिग् बृहती न्यकुंसारणी । मध्यमः ॥

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