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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 46
    ऋषिः - विहव्य ऋषिः देवता - लिङ्गोक्ता देवताः छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    ये नः॑ स॒पत्ना॒ऽअप॒ ते भ॑वन्त्विन्द्रा॒ग्निभ्या॒मव॑ बाधामहे॒ तान्।वस॑वो रु॒द्राऽआ॑दि॒त्याऽउ॑परि॒स्पृशं॑ मो॒ग्रं चेत्ता॑रमधिरा॒जम॑क्रन्॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। नः॒। स॒पत्ना॒ इति॑ स॒ऽपत्नाः॑। अप॑। ते। भ॒व॒न्तु॒। इ॒न्द्रा॒ग्निभ्या॒मिती॑न्द्रा॒ग्निऽभ्या॑म्। अव॑। बा॒धा॒म॒हे॒। तान् ॥ वस॑वः। रु॒द्राः। आ॒दि॒त्याः। उ॒प॒रिस्पृश॒मित्युपरि॒ऽस्पृश॑म्। मा॒। उ॒ग्रम्। चेत्तार॑म्। अ॒धि॒रा॒जमित्य॑धिऽरा॒जम्। अ॒क्र॒न् ॥४६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये नः सपत्नाऽअप ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामहे तान् । वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशम्मोग्रञ्चेत्तारमधिराजमक्रन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। नः। सपत्ना इति सऽपत्नाः। अप। ते। भवन्तु। इन्द्राग्निभ्यामितीन्द्राग्निऽभ्याम्। अव। बाधामहे। तान्॥ वसवः। रुद्राः। आदित्याः। उपरिस्पृशमित्युपरिऽस्पृशम्। मा। उग्रम्। चेत्तारम्। अधिराजमित्यधिऽराजम्। अक्रन्॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 46
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    भावार्थ -
    (ये) जो (नः) हमारे (सपत्ना:) शत्रुगण हैं (ते) वे (अप भवन्तु) हमसे दूर रहें। ( तान् ) उनका हम लोग ( इन्द्रियाग्निभ्याम् ) सूर्य से जिस प्रकार मेघ और अन्धकार छिन्न भिन्न होते और अग्नि से जिस प्रकार अन्धकार दूर होता है उसी प्रकार इन्द्र, सेनापति और अग्नि, अग्रणी राजा वा वायु के समान बलवान् और अग्नि के समान तेजस्वी नायक पुरुषों से या विद्युत् और वायु के अस्त्रों से (अव बाधामहे) विनष्ट करें । (वसवः) राष्ट्र में बसने वाले जन (रुद्राः) शत्रु को रुलाने वाले वीर पुरुष और (आदित्याः) आदान प्रतिदान करने वाले वैश्यगण ये सब मिलकर ( उपरिस्पृशम् ) सबके ऊपर के पद पर पहुँचे हुए, ( उग्रम) अति बलवान् (मा) मुझको (चेत्तारम् ) सबको सत्यासत्य बतलाने और चेताने ज्वाला ( अधिराजम् ) अधिराज, ( अक्रन् ) बनावें । अथवा - ( वसवः) पृथिवी आदि आठ वसु, (रुद्राः) १० प्राण और एक आत्मा और १२ मास सब मुझे यथार्थ विज्ञ, राजा बनावें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विहन्यः । वरवादयो लिङ्गोक्ता: । भुरिक त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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