Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 76
    ऋषिः - उत्कील ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    1

    धा॒म॒च्छद॒ग्निरिन्द्रो॑ ब्र॒ह्मा दे॒वो बृह॒स्पतिः॑। सचे॑तसो॒ विश्वे॑ दे॒वा य॒ज्ञं प्राव॑न्तु नः शु॒भे॥७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒म॒च्छदिति॑ धाम॒ऽछत्। अ॒ग्निः। इन्द्रः॑। ब्र॒ह्मा। दे॒वः। बृह॒स्पतिः॑। सचे॑तस॒ इति॑ सऽचे॑तसः। विश्वे॑। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। प्र। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। शु॒भे ॥७६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धामच्छदग्निरिन्द्रो ब्रह्मा देवो बृहस्पतिः । सचेतसो विश्वे देवायज्ञम्प्रावन्तु नः शुभे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धामच्छदिति धामऽछत्। अग्निः। इन्द्रः। ब्रह्मा। देवः। बृहस्पतिः। सचेतस इति सऽचेतसः। विश्वे। देवाः। यज्ञम्। प्र। अवन्तु। नः। शुभे॥७६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 76
    Acknowledgment

    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (आम्ही सर्वजन कामना करू या की) (देव) सर्व विद्वान (धामच्छत्) आपल्या जन्म, स्थान आणि नांवाचा विस्तार करतो (अग्नि:) अग्नी आणि (इन्द्र:) विद्युतप्रमाणे असणारे (आमच्या राज्याचे) मंत्री आणि राजा तसेच (ब्रह्मा) चतुर्वेदज्ञाता विद्वान (बृहस्पति:) वेदवाणीच्या पठन-पाठनाद्वारे आमचे पालन करणारा वेद्याठी विद्वान (सचेतस:) चिंतक वैज्ञानिक आणि (विश्वेदेवा:) इतर सर्व (क्षेत्रातील विश्वेषज्ञजन लोकांनी) (न:) आमच्या (शुभे) कल्याणाकरिता (यज्ञम्) विज्ञान आणि योगमार्गाद्वारा (प्र, अवन्तु) आमचे रक्षण करावे ॥76॥

    भावार्थ - भावार्थ - सर्व विद्वानांनी सर्व मनुष्यादी प्राण्यांच्या कल्याणाकरिता सदा-सर्वदा सत्याचाच उपदेश आवा ॥76॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top