ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 26/ मन्त्र 13
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वो व्यश्वो वाङ्गिरसः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
यो वां॑ य॒ज्ञेभि॒रावृ॒तोऽधि॑वस्त्रा व॒धूरि॑व । स॒प॒र्यन्ता॑ शु॒भे च॑क्राते अ॒श्विना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयः । वा॒म् । य॒ज्ञेभिः॑ । आऽवृ॑तः । अधि॑ऽवस्त्रा । व॒धूःऽइ॑व । स॒प॒र्यन्ता॑ । शु॒भे । च॒क्रा॒ते॒ इति॑ । अ॒श्विना॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वां यज्ञेभिरावृतोऽधिवस्त्रा वधूरिव । सपर्यन्ता शुभे चक्राते अश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठयः । वाम् । यज्ञेभिः । आऽवृतः । अधिऽवस्त्रा । वधूःऽइव । सपर्यन्ता । शुभे । चक्राते इति । अश्विना ॥ ८.२६.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 26; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, like a bride covered in sacramental robes, one who is robed in the fragrance of yajna performed in your honour, him you requite with fulfilment and establish him in the good life.
मराठी (1)
भावार्थ
राजसभेचे नियम सर्वांनी पाळावेत व जे त्यांच्या प्रचारात साह्य करून दान देतात त्यांना पारितोषिक द्यावे. ॥१३॥
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमर्थमाह ।
पदार्थः
अधिवस्त्रा=अधिकवस्त्रा=उपरिनिहितवासाः । वधूरिव । यो जनः । वां=युवयोः । यज्ञेभिः=कर्मभिर्व्रतैश्च आवृतो भवति । सपर्यन्ता=अभीष्टप्रदानेन तं परिचरन्तौ । युवाम् । तं मनुष्यम् । शुभे=शुभकर्मणि । चक्राते=कुरुतः ॥१३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
पुनः उसी अर्थ को कहते हैं ।
पदार्थ
(अधिवस्त्रा) ऊपर से नीचे तक वस्त्र धारण करनेवाली (वधूः+इव) कुलवधू के समान (यः+वाम्+यज्ञेभिः+आवृतः) जो जन अपने शुभकर्मरूप वस्त्रों से अपने को ढकते हैं, उनकी कामनाओं को (सपर्यन्ता) पूर्ण करते हुए आप सब उनको (शुभे) शुभकर्म के ऊपर या मङ्गल के ऊपर (चक्रात) स्थापित करते हैं (अश्विना) हे मन्त्रिदलसहित राजन् ! आप सदा प्रजाओं का कल्याण कीजिये ॥१३ ॥
भावार्थ
राजसभा से प्रचालित नियमों को सब मानें और जो कोई उनके प्रचार में साहाय्य दान करें, वे परितोषणीय हैं ॥१३ ॥
विषय
दिन-रात्रिवत् पति-पत्नी जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( अश्विना) अश्व, व्यापक तेजस्वी किरणों वाले सूर्य चन्द्रवत् वा दिन रात्रिवत् पति पत्नी जनो ! ( यः ) जो पुरुष ( अधिवस्त्रा वधूः इव ) अधिक वा उत्तम वस्त्र धारण करने वाली नव-वधू के समान स्वयं भी ( अधिवस्त्रः ) ऊपर उत्तरीय वस्त्र धारण कर या उत्तम ‘वस्त्र’ अर्थात् रहने योग्य गृह का अधिकारी होकर ( वां ) आप दोनों के योग्य ( यज्ञेभिः ) दान, सत्संग, पूजा सत्कारादि से ( आवृतः ) अपने को ढकलेता है उस विद्वान् की ( सपर्यन्ता ) सेवा शुश्रूषा करने वाले आप दोनों ( शुभे) शुभ कर्म या फल के लिये ( चक्राते ) यत्न करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्वो वाङ्गिरस ऋषिः॥ १—१९ अश्विनौ। २०—२५ वायुदेवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ६, ७ उष्णिक्। २, ८, २३ विराडुष्णिक्। ५, ९—१५, २२ निचृदुष्णिक्। २४ पादनिचृदुष्णिक्। १६, १९ विराड् गायत्री। १७, १८, २१ निचृद् गायत्री। २५ गायत्री। २० विराडनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
प्राणसाधना से आवृत जीवन
पदार्थ
[१] (यः) = जो भी व्यक्ति हे प्राणापानो ! (वाम्) = आपके (यज्ञेभिः) = यज्ञों से, पूजनों से (आवृतः) = समन्तात् इस प्रकार आवृत होता है, (इव) = जैसे (अधिवस्त्रा वधूः) = उत्कृष्ट वस्त्रों को धारण किये हुए वधू । हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप उसे (सपर्यन्ता) = अभीष्ट ज्ञान व शक्ति के दान से पूजित करते हुए (शुभे चक्राते) = सदा मंगल कार्यों में व्यापृत करते हो। [२] मनुष्य प्राण-साधना से अपने जीवन को इस प्रकार आवृत कर ले, जैसे एक वधू वस्त्रों से अपने शरीर को आवृत करती है। वधू की शोभा अपने अंगों को वस्त्रों से आवृत किये हुए होने में ही है। इसी प्रकार मनुष्य की शोभा इसी में है कि वह अपने प्रत्येक दिन को प्राणसाधना से आवृत कर ले, प्रात: भी प्राणसाधना, सायं भी प्राणसाधना । ये प्राणापान ज्ञान व शक्ति आदि इष्ट पदार्थों को प्राप्त करायेंगे और हमें सदा शुभ वृत्तिवाला बनायेंगे।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना हमारे जीवन की रक्षिका बन जाये। यह हमें ज्ञान व शक्ति आदि अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त कराती हुई सदा शुभ कार्यों में प्रवृत्त रखेगी।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal