ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 26/ मन्त्र 7
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वो व्यश्वो वाङ्गिरसः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
उप॑ नो यातमश्विना रा॒या वि॑श्व॒पुषा॑ स॒ह । म॒घवा॑ना सु॒वीरा॒वन॑पच्युता ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । नः॒ । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । रा॒या । वि॒श्व॒ऽपुषा॑ । स॒ह । म॒घऽवा॑ना । सु॒ऽवीरौ॑ । अन॑पऽच्युता ॥
स्वर रहित मन्त्र
उप नो यातमश्विना राया विश्वपुषा सह । मघवाना सुवीरावनपच्युता ॥
स्वर रहित पद पाठउप । नः । यातम् । अश्विना । राया । विश्वऽपुषा । सह । मघऽवाना । सुऽवीरौ । अनपऽच्युता ॥ ८.२६.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 26; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Noble Ashvins, mighty brave and infallible heroes, come close to us with wealth and nourishments for the health and advancement of all people of the world, powerful and munificent as you are.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या उद्देशाने राष्ट्राच्या हितसाधनासाठी राजाजवळ सर्व साधने उपस्थित असतात त्यासाठी राजा व मंत्रिमंडळ यांनी सदैव प्रजेच्या अभ्युदयासाठी प्रयत्न करावेत. ॥७॥
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदेव दर्शयति ।
पदार्थः
हे अश्विना=अश्विनौ ! विश्वपुषा=सर्वपोषकेण । राया=धनेन सह । नः=अस्मान् । उपयातम् । यतो युवाम् । मघवाना=मघवानौ=धनवन्तौ । सुवीरौ । पुनः । अनपच्युता=अपच्युतिरहितौ ॥७ ॥
हिन्दी (3)
विषय
पुनः उसी को दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(अश्विना) हे राजा तथा मन्त्रिदल ! (विश्वपुषा) सबको पोषण करनेवाली (राया) धनसम्पत्तियों के साथ (नः) हम लोगों के (उपयातम्) निकट आवें अर्थात् हम प्रजाओं को अपने उद्योग और वाणिज्यादि द्वारा धनसम्पन्न बनावें, क्योंकि आप (मघवाना) परम धनाढ्य हैं, (सुवीरौ) वीरुपुरुषों से युक्त (अनपच्युतौ) पतनरहित हैं ॥७ ॥
भावार्थ
जिस हेतु राष्ट्र के हितसाधन के लिये राजा के निकट सर्वसाधन उपस्थित रहते हैं, अतः राजदल को सदा प्रजा के अभ्युदय के लिये प्रयत्न करना उचित है ॥७ ॥
विषय
स्त्री-पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) अश्वादि सैन्यों, वा राष्ट्र के स्वामी जनो ! आप दोनों ( विश्वपुषा राया सह ) सबके पोषणकारी ऐश्वर्य के साथ ( नः उप यातम् ) हमें प्राप्त होवो। तुम दोनों ( मघवाना ) उत्तम, पूज्य धन से युक्त, ( सु-वीरौ ) उत्तम, पूज्य वीर, बलवान् एवं विद्यावान्, और ( अनपच्युतौ ) दृढ़ एवं कुमार्ग में न जाने वाले होवो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्वो वाङ्गिरस ऋषिः॥ १—१९ अश्विनौ। २०—२५ वायुदेवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ६, ७ उष्णिक्। २, ८, २३ विराडुष्णिक्। ५, ९—१५, २२ निचृदुष्णिक्। २४ पादनिचृदुष्णिक्। १६, १९ विराड् गायत्री। १७, १८, २१ निचृद् गायत्री। २५ गायत्री। २० विराडनुष्टुप्॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
राया विश्वपुषा सह
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (नः) = हमें (विश्वपुषा राया सह) = सब का पोषण करनेवाले धन के साथ (उपयातम्) = प्राप्त होवो । प्राणसाधक धनार्जन करता है, यह धन केवल उसका पोषण न करके सबका पोषण करनेवाला होता है। [२] हे अश्विना ! आप (मघवाना) = सब ऐश्वर्योंवाले हो । (सुवीरा) = उत्तम वीर हो । (अनपच्युता) = शत्रुओं से अनपच्यावनीय हों, शत्रु आप को आक्रान्त नहीं कर पाते। प्राणसाधना के होने पर शरीर में रोगों व वासनाओं का प्रवेश नहीं हो पाता।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना हमें सर्वपोषक धन को प्राप्त कराती है। प्राणापान 'ऐश्वर्य, वीरता व शत्रुओं से अपराजेयता' वाले हैं।
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