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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    भ॒द्रा वस्त्रा॑ सम॒न्या॒३॒॑ वसा॑नो म॒हान्क॒विर्नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् । आ व॑च्यस्व च॒म्वो॑: पू॒यमा॑नो विचक्ष॒णो जागृ॑विर्दे॒ववी॑तौ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒द्रा । वस्त्रा॑ । स॒म॒न्या॑ । वसा॑नः । म॒हान् । क॒विः । नि॒ऽवच॑नानि । शं॒स॒न् । आ । व॒च्य॒स्व॒ । च॒म्वोः॑ । पू॒यमा॑नः । वि॒ऽच॒क्ष॒णः । जागृ॑विः । दे॒वऽवी॑तौ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भद्रा वस्त्रा समन्या३ वसानो महान्कविर्निवचनानि शंसन् । आ वच्यस्व चम्वो: पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भद्रा । वस्त्रा । समन्या । वसानः । महान् । कविः । निऽवचनानि । शंसन् । आ । वच्यस्व । चम्वोः । पूयमानः । विऽचक्षणः । जागृविः । देवऽवीतौ ॥ ९.९७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विचक्षणः) उत्कटबुद्धिर्विद्वान् (जागृविः) जागरणशीलः (चम्वोः, पूयमानः) महतः समाजान् स्वज्ञानशक्त्या पावयन् (समन्या, वस्त्रा) शान्तिरक्षकान् (भद्राः) शोभनभावान् (वसानः) दधत् (निवचनानि, शंसन्) सुवक्तव्यानि जानन् (महान्, कविः) महाविद्वान् सम्पद्यते (देववीतौ) यज्ञे उक्तविद्वांसं (आ, वच्यस्व) इत्थं सुवाचा सत्कुर्यात् ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    उक्त विद्वान् (विचक्षणः) विलक्षण बुद्धिवाला (जागृविः) जागरणशील (चम्वोः, पूयमानः) बड़े-बड़े समाजों को अपने ज्ञान द्वारा पवित्र करता हुआ (समन्या) शान्ति की (वस्त्रा) रक्षा करनेवाले (भद्राः) सुन्दर भावों को (वसानः) धारण करता हुआ (निवचनानि) शंसन् जो सुन्दर वक्तव्य है, उनको जानता हुआ (महान्, कविः) महा विद्वान् होता है। (देववीतौ) यज्ञ के विषय में उक्त विद्वान् को (आवच्यस्व) ऐसा वचन कहकर सत्कृत करें ॥२॥

    भावार्थ

    जो पुरुष अपने आध्यात्मिकादि यज्ञों में उक्त विद्वानों की प्रशंसा तथा सत्कार करते हैं, वे अभ्युदयशील होते हैं ॥२॥

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    विषय

    सेनापति के सभापतिवत् कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    वह (महान् कविः) गुणों में महान्, क्रान्तदर्शी, विद्वान् मेधावी, (भद्रा) सुन्दर कल्याण सूचक, (समन्या वस्त्रा वसानः) संग्राम योग्य वा सभाभवनादि के योग्य वस्त्रों को धारण करता हुआ (निवचनानि शंसन्) निश्चित सत्य वचनों का उपदेश करता हुआ, (चम्वोः पूयमानः) दो महती सेनाओं के बीच अभिषिक्त होता हुआ सेनापति के तुल्य (देव-वीतौ जागृविः) देवों, विद्वानों, वीरों एवं शुभगुणों की प्राप्ति में (जागृविः) जागने वाला, सदा सावधान, अप्रमादी, (विचक्षणः) विशेष ज्ञान का द्रष्टा होकर (आ वच्यस्व) प्राप्त हो और सर्वत्र शुभ उपदेश करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    भद्रा वस्त्रा समन्यावसान:

    पदार्थ

    हे सोम ! तू गतमन्त्र के अनुसार प्रभुस्मरण व स्वाध्याय के द्वारा (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ (चम्वो:) = इन द्यावापृथिवी में, मस्तिष्क व शरीर में (आवच्यस्व) = समन्तात् कहा जाये, शरीर में चारों ओर तेरा प्रवेश हो । वहाँ तू (भद्रा) = कल्याण कर (समन्या) = संग्राम के योग्य (वस्त्रा) = आच्छादक तेजों को (वसानः) = धारण करता हुआ हो । तूने ही तो रोगकृमियों व अशुभवृत्तियों के साथ संग्राम करना है । इस प्रकार (महान्) = तू हमारे जीवन को नीरोग व निष्पाप बनाकर महान् बना। (कविः) = क्रान्तदर्शी बना। (निवचनानि) = नम्रता से बोले जानेवाले स्तुतिवचनों को (शंसन्) = उच्चारित करनेवाला हो, हमें स्तुतिमय जीवन वाला बना । (विचक्षणः) = प्रत्येक वस्तु को बारीकी से देखनेवाला हो और (देववीतौ) = दिव्यगुणों की प्राप्ति के निमित्त सदा (जागृविः) = जागरित हो । तू हमें बुद्धिमान् व दिव्यगुणों वाला बना ।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम रोगकृमियों के साथ संग्राम के योग्य तेज को प्राप्त कराता है । यह हमारे जीवन को पवित्र व विवेकशील बनाता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O holy Soma power, pure, purified and purifying, wearing vestments of a fighting force, great and creative, expressive loud and bold, come, expand and resound between heaven and earth over all things material and spiritual, ever watchful, ever awake, in the service of divinities in yajna.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष आपल्या आध्यात्मिक यज्ञात वरील शांत, रक्षक विद्वानांची प्रशंसा व सत्कार करतात, त्यांचा अभ्युदय होतो. ॥२॥

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