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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 59
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    अ॒श्विना॒ नमु॑चेः सु॒तꣳ सोम॑ꣳ शु॒क्रं प॑रि॒स्रुता॑। सर॑स्वती॒ तमाभ॑रद् ब॒र्हिषेन्द्रा॑य॒ पात॑वे॥५९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्विना॑। नमु॑चेः। सु॒तम्। सोम॑म्। शु॒क्रम्। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। सर॑स्वती। तम्। आ। अ॒भ॒र॒त्। ब॒र्हिषा॑। इन्द्रा॑य। पात॑वे ॥५९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विना नमुचेः सुतँ सोमँ शुक्रम्परिस्रुता । सरस्वती तामाभरद्बर्हिषेन्द्राय पातवे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विना। नमुचेः। सुतम्। सोमम्। शुक्रम्। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। सरस्वती। तम्। आ। अभरत्। बर्हिषा। इन्द्राय। पातवे॥५९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 59
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- যাহারা (পরিস্রুতা) সব দিক্ দিয়া উত্তম চাল-চলন যুক্ত (অশ্বিনা) শুভ গুণ, কর্ম, স্বভাবে ব্যাপ্ত (সরস্বতী) প্রশংসাযুক্ত স্ত্রী তথা পুরুষ (বর্হিষা) সুখ বৃদ্ধিকারী কর্ম দ্বারা (ইন্দ্রায়) পরমৈশ্বর্য্যের সুখের জন্য এবং (নমুচেঃ) যাহা ত্যাগ করে না সেই অসাধ্য রোগ নিরাময় হওয়ার জন্য (শুক্রম্) বীর্য্যকারী (সুতম্) সম্যক্ নিষ্পাদিত (সোমম্) সোমাদি ওষধি সমূহের (পাতবে) রক্ষার জন্য (তম্) সেই রসকে (আ, অভরৎ) ধারণ করে তাহারাই সর্বদা সুখে নিবাস করে ॥ ৫ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- যাহারা অঙ্গ-উপাঙ্গ সহিত বেদকে পাঠ করিয়া হস্তক্রিয়া জানে তাহারা অসাধ্য রোগকেও নিরাময় করে ॥ ৫ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒শ্বিনা॒ নমু॑চেঃ সু॒তꣳ সোম॑ꣳ শু॒ক্রং প॑রি॒স্রুতা॑ ।
    সর॑স্বতী॒ তমাऽऽऽভ॑রদ্ ব॒র্হিষেন্দ্রা॑য়॒ পাত॑বে ॥ ৫ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অশ্বিনেত্যস্য বিদর্ভির্ঋষিঃ । অশ্বিসরস্বতীন্দ্রা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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