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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 17
    ऋषिः - पुरोधा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अन्व॒ग्निरु॒षसा॒मग्र॑मख्य॒दन्वहा॑नि प्रथ॒मो जा॒तवे॑दाः। अनु॒ सूर्य॑स्य पुरु॒त्रा च॑ र॒श्मीननु॒ द्यावा॑पृथि॒वीऽआत॑तन्थ॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑। अ॒ग्निः। उ॒षसा॑म्। अग्र॑म्। अ॒ख्य॒त्। अनु॑। अहा॑नि। प्र॒थ॒मः। जा॒तवे॑दा॒ इति॑ जा॒तऽवे॑दाः। अनु॑। सूर्य॑स्य। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। च॒। र॒श्मीन्। अनु॑। द्यावा॑पृथि॒वीऽइति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। आ। त॒त॒न्थ॒ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्वग्निरुषसामग्रमख्यदन्वहानि प्रथमो जातवेदाः । अनु सूर्यस्य पुरुत्रा च रश्मीननु द्यावापृथिवीऽआततन्थ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अनु। अग्निः। उषसाम्। अग्रम्। अख्यत्। अनु। अहानि। प्रथमः। जातवेदा इति जातऽवेदाः। अनु। सूर्यस्य। पुरुत्रेति पुरुऽत्रा। च। रश्मीन्। अनु। द्यावापृथिवीऽइति द्यावापृथिवी। आ। ततन्थ॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 17
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    भावार्थ -

    ( अग्नि: ) महान् अग्नि ( प्रथम ) सब से प्रथम ( जातवेदाः ) विद्यमान, ज्ञानवान् परमेश्वर ही ( उषसाम् ) उषाओं के ( अग्रम्) अग्र, मुख्य भाग सूर्य को भी ( अख्यत् ) प्रकाशित करता है। ( अनु ) उसके पीछे स्वयं सूर्य तदनुसार अन्य उत्कृष्ट विद्वान् पुरुष भी व्यवहारों को प्रकाशित करें। ( अनु अहानि अख्यत् ) वही परमेश्वर दिनों को प्रकाशित करता है । ( सूर्यस्य ) वही सूर्य की ( पुरुत्रा ) बहुतसी (रश्मीनू) रश्मे, किरणों को भी प्रकाशित करता है ( अनु ) वही ( द्यावा पृथिवी ) आकाश और पृथिवी को भी ( आततन्थ ) सर्वत्र विस्तृत करता है । उसी प्रकार राष्ट्र में (प्रथमः जातवेदाः) सब से श्रेष्ठ विद्वान् पुरुष भी ( उषसाम् अग्रम् ) उदय कालों को प्रकाशित कर ( अहानि ) प्राप्त दिनों को प्रकाशित करे । ( सूर्यस्य पुरुत्रा रश्मीनू ) सूर्य के समान तेजस्वी राजा के नाना प्रबन्ध व्यवस्थाओं और कार्यों को प्रकाशित करे। वह ( द्यावा पृथिवी ) राजा प्रजा दोनों की वृद्धि करे || शत० ६ । ३ । ३ । ६ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    पुरोधस ऋषयः । अग्निदेवता । निचृद् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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