यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 3
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - सविता देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
1
यु॒क्त्वाय॑ सवि॒ता दे॒वान्त्स्व॑र्य॒तो धि॒या दिव॑म्। बृ॒हज्ज्योतिः॑ करिष्य॒तः स॑वि॒ता प्रसु॑वाति॒ तान्॥३॥
स्वर सहित पद पाठयु॒क्त्वाय॑। स॒वि॒ता। दे॒वान्। स्वः॑। य॒तः। धि॒या। दिव॑म्। बृ॒हत्। ज्योतिः॑। क॒रि॒ष्य॒तः। स॒वि॒ता। प्र। सु॒वा॒ति॒। तान् ॥३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
युक्त्वाय सविता देवान्त्स्वर्यतो धिया दिवम् । बृहज्ज्योतिः करिष्यतः सविता प्र सुवाति तान् ॥
स्वर रहित पद पाठ
युक्त्वाय। सविता। देवान्। स्वः। यतः। धिया। दिवम्। बृहत्। ज्योतिः। करिष्यतः। सविता। प्र। सुवाति। तान्॥३॥
विषय - विद्वान् ज्ञानवान् पुरुष का कर्त्तव्य । राजा का कर्तव्य ।
भावार्थ -
( सविता ) जगत् के समस्त प्रकाशमान पदार्थों को उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर ( स्वः यतः ) सुख और प्रकाश और ताप को प्राप्त करने या देनेवाले ( देवान् ) विद्वानों, एवं दिव्य गुणों, सूक्ष्म दिव्य तत्वों को ( धिया ) अपनी धारण शक्ति और क्रिया शक्ति से ( दिवम् ) तेज के साथ ( युक्त्वाय ) युक्त करके बाद ( बृहत् ज्योतिः करिप्यतः ) बढ़े भारी प्रकाश या विज्ञान को पैदा करनेवाले ( तानू ) उनको ( प्रसुवाति ) उत्तम रीति से प्रेरित करता है । उसी प्रकार ( सविता ) वैज्ञानिक पदार्थों का उत्पादक विद्वान् पुरुष ( दिवं स्वः यतः ) प्रकाश और सुख या ताप उत्पन्न करनेवाले ( देवान् ) दिव्य सूक्ष्म उन तत्वों को जो ( बृहत् ज्योतिः करिष्यतः ) बङे २ भारी प्रकाश या विज्ञानसिद्ध कार्य को करने में समर्थ हैं उनको ( प्रसुवाति ) उत्पन्न करे, प्रेरित करे, संयोजित करे ॥ शत०६।३।११।१५ ॥ योगी के पक्ष में - सविता, आदित्य- योगी ( स्वः यतः देवान् ) सुख या परमानन्द की तरफ जानेवाले इन्द्रियरूप प्राणों या साधनों को ( दिवम् ) प्रकाशस्वरूप परमेश्वर के साथ ( युक्त्याय ) योग द्वारा समाहित करके ( सविता ) सूर्य के समान या प्रजापति के समान वृहत् ( ज्योतिः करिष्यतः तान् प्रसुवाति ) कालान्तर में महान् ज्योति को साक्षात् कराने में समर्थ उनको प्रेरित करे । परमेश्वर के पक्ष में -- सविता परमेश्वर सुख और ( दिवम् ) मोक्ष की तरफ जानेवाले ( देवान् ( विद्वानों को अपने ( धिया) ज्ञान से युक्त करके ( बृहत् ज्येोतिः ) महान् ब्रह्म तेज का सम्पादन करनेवाले उनको ( प्रसुवाति ) और भी उत्कृष्टरूप से प्रेरित करता है । राजा के पक्ष में -प्रेरक, आज्ञापक सेनापति अपनी बुद्धि में सुख और तेज को प्राप्त ( देवान् ) विजयेच्छु पुरुषों और विद्वानों को स्थान २ पर नियुक्त करके ( बृहत् ज्योतिः ) बड़े भारी वीर्य बल या राज्य के वैभव को बनाने या देनेवाले उनको (सविता ) प्रेरक आज्ञापक राजा ( प्रसुवाति ) उत्तम रीति से चलाता है । इतिदिक् ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
सविता ऋषिः । सविता देवता । । निचृदनुष्टुप् । गान्धारः ॥
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