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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 78
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठ ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    दꣳष्ट्रा॑भ्यां म॒लिम्लू॒ञ्जम्भ्यै॒स्तस्क॑राँ२ऽउ॒त। हनु॑भ्या॒ स्ते॒नान् भ॑गव॒स्ताँस्त्वं खा॑द॒ सुखा॑दितान्॥७८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दꣳष्ट्रा॑भ्याम्। म॒लिम्लू॑न्। जम्भ्यैः॑। तस्क॑रान्। उ॒त। हनु॑भ्या॒मिति॒ हनु॑ऽभ्याम्। स्ते॒नान्। भ॒ग॒व॒ इति॑ भगऽवः। तान्। त्वम्। खा॒द॒। सुखा॑दिता॒निति॒ सुऽखा॑दितान् ॥७८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दँष्ट्राभ्याम्मलिम्लून्जम्भ्यैस्तस्कराँ उत । हनुभ्याँ स्तेनान्भगवस्ताँस्त्वङ्खाद सुखादितान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दꣳष्ट्राभ्याम्। मलिम्लून्। जम्भ्यैः। तस्करान्। उत। हनुभ्यामिति हनुऽभ्याम्। स्तेनान्। भगव इति भगऽवः। तान्। त्वम्। खाद। सुखादितानिति सुऽखादितान्॥७८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 78
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    भावार्थ -

    जिस प्रकार मनुष्य अपनी ( दंष्टाभ्यां ) दाढो से चबाकर ( जम्भ्यैः ) अगले कुतरनेवाले दांतों से कुतर २ कर ( तनुभ्यां ) दोनों दाढों और जबाङो से कुचिल २ कर उत्तम रीति से ( सुखादितान् ) चबाये गये ग्रासों को खा जाता है उसी प्रकार हे अग्ने ! राजन् ! हे ( भगवः ) ऐश्वर्यवान् राजन् ! ( दंष्ट्राभ्याम् ) दांतों के समान दशन करनेवाले शस्त्रों के दो दलों से ( मलिम्लून ) मलिन कार्य करने एवं प्रजाओं की मृत्यु करनेवाले दुष्टों को और ( तस्करान् ) छुपे पापों, हत्याओं को करनेवाले पुरुषों को ( जम्भ्यैः ) बांध २ कर मारनेवाले उपायों से, और ( हनू भ्याम् ) हनन करनेवाले द्विविध उपायों से ( स्तेनान् ) चोर डाकू पुरुषों को ( त्वं ) तू (खाद ) चबा डाल, कुचल कर ग्रस ले ॥ शत० ६ । ६ । ३ । १० ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    अग्निदेवता । भूरिगुष्णिक् । ऋषभः ॥

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