ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 13
त्वमे॒तद॑धारयः कृ॒ष्णासु॒ रोहि॑णीषु च । परु॑ष्णीषु॒ रुश॒त्पय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । ए॒तत् । अ॒धा॒र॒यः॒ । कृ॒ष्णासु॑ । रोहि॑णीषु । च॒ । परु॑ष्णीषु । रुश॑त् । पयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमेतदधारयः कृष्णासु रोहिणीषु च । परुष्णीषु रुशत्पय: ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । एतत् । अधारयः । कृष्णासु । रोहिणीषु । च । परुष्णीषु । रुशत् । पयः ॥ ८.९३.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Only you as mind and electric energy bear, hold and maintain in circulation this bright vital liquid energy as sap and blood in the dark and red life sustaining veins and arteries of living forms.
मराठी (1)
भावार्थ
शारीरिक क्रिया वातनाड्यांमुळे उत्पन्न होतात. त्यांच्या आत एक तरल पदार्थ व वर सूत्रतंतू असतो. प्रत्येक तंतूच्या दोन वाहिका असतात. एक वाहिका मस्तकामध्ये व दुसरी भिन्न भिन्न अंगात असते. या दोन प्रकारच्या असतात. एकाद्वारे इन्द्रियांची अनुभूती मस्तकापर्यंत पोहोचते व दुसऱ्या प्रकारच्या सूत्रांद्वारे मस्तकाच्या प्रेरणा अंगापर्यंत पोचतात. उष्ण तरल पदार्थ त्यांच्या जिवंतपणाचे लक्षण आहे. या प्रकारे मस्तकच या दोन प्रकारच्या वातसूत्रांद्वारे शरीराच्या चैतन्याचा धारक बनते. ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(त्वम्) तू ही (कृष्णासु) तुझ मस्तिष्क द्वारा आदेश, प्रेरणा, आदि का आकर्षण करने वाली (च) और (रोहिणीषु) शारीरिक अनुभूति को ले मस्तिष्क में आरोहण करने वाली (परुष्णीषु) कुटिलगामिनी-वातनाड़ियों में (रुशत्) उष्ण (पयः) तरल पदार्थ को (अधारयः) धारता है॥१३॥
भावार्थ
शारीरिक क्रियाओं का संचालन वातनाड़ियों द्वारा होता है। इनके भीतर एक तरल पदार्थ तथा ऊपर सूत्रतन्तु होता है। प्रत्येक तन्तु के दो सिरे होते हैं। इनमें से एक मस्तिष्क में और दूसरा भिन्न-भिन्न अंगों में होता है। ये दो प्रकार के हैं। एक से इन्द्रियों की अनुभूति मस्तिष्क तक और दूसरे प्रकार के सूत्रों से मस्तिष्क की प्रेरणायें अंगों तक पहुँचती हैं। उष्ण तरल पदार्थ इनके जीवित होने का लक्षण है। इस भाँति मस्तिष्क ही इन दो प्रकार के वातसूत्रों के द्वारा शरीर के चैतन्य का धारणकर्ता बना रहता है॥१३॥
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर के गुण वर्णन।
भावार्थ
( कृष्णासु ) काली ( रोहिणीषु च ) और रक्त वर्ण की ( परुष्णीषु ) गौओं में ( त्वम् एतत् रुशत् पयः अधारयः ) तू ही इस चमकते दूध को धारण कराता है। अथवा— हे प्रभो ! तू (कृष्णासु) कृषि करने योग्य भूमियों में ( रुशत् पयः ) चमकता लहलाता अन्न, ( रोहिणीषु ) उगने वाली ओषधि में तेजोयुक्त तीक्ष्ण रस और (परु ष्णीषु) कुटिलगामिनी नदियों में जल वा पर्व २ पर उष्ण देह की नाड़ियों द्वारा उज्ज्वल रुधिर को तू ही वृष्टि द्वारा सूर्यवत् धारण कराता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सुकक्ष ऋषिः॥ १—३३ इन्द्रः। ३४ इन्द्र ऋभवश्च देवताः॥ छन्दः—१, २४, ३३ विराड़ गायत्री। २—४, १०, ११, १३, १५, १६, १८, २१, २३, २७—३१ निचृद् गायत्री। ५—९, १२, १४, १७, २०, २२, २५, २६, ३२, ३४ गायत्री। १९ पादनिचृद् गायत्री॥
विषय
काली व लाल सब गौओं में सफेद दूध
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (कृष्णासु) = कृष्ण वर्णवाली (च) = व (रोहिणीषु) = रोहित वर्णवाली (पुरुष्णीषु) = पालन व पूरण करनेवाली गौओं में (एतत्) = इस (रुशत्) = देदीप्यमान- चमकते हुए (पय:) = दुग्ध को (अधारयः) = धारण करते हैं। [२] गौओं का रंग भिन्न-भिन्न है । परन्तु उनके अन्दर दूध का वर्ण अलग-अलग नहीं। इसी प्रकार प्रभु सब भिन्न-भिन्न वर्णवाली त्वचाओंवाले मनुष्यों के लिये देदीप्यमान् ज्ञानदुग्ध को धारण करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - यह भी प्रभु के अद्भुत कार्यों में से एक कार्य है कि सब भिन्न-भिन्न वर्णवाली गौओं में दूध का वर्ण एक ही है।
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