अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 12
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
दि॒वि त्वात्त्रि॑रधारय॒त्सूर्या॒ मासा॑य॒ कर्त॑वे। स ए॑षि॒ सुधृ॑त॒स्तप॒न्विश्वा॑ भू॒ताव॒चाक॑शत् ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वि । त्वा॒ । अत्त्रि॑: । अ॒धा॒र॒य॒त् । सूर्य॑ । मासा॑य । कर्त॑वे । स: । ए॒षि॒ । सुऽधृ॑त: । तप॑न् । विश्वा॑ । भू॒ता । अ॒व॒ऽचाक॑शत् ॥2.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवि त्वात्त्रिरधारयत्सूर्या मासाय कर्तवे। स एषि सुधृतस्तपन्विश्वा भूतावचाकशत् ॥
स्वर रहित पद पाठदिवि । त्वा । अत्त्रि: । अधारयत् । सूर्य । मासाय । कर्तवे । स: । एषि । सुऽधृत: । तपन् । विश्वा । भूता । अवऽचाकशत् ॥2.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(सूर्य) हे सूर्य (मासाय कर्त्तवे) सौर और चान्द मास के निर्माण के लिये, (अत्रिः) परमेश्वर ने (त्वा) तुझे (दिवि) द्युलोक में (आ अधारयत्) सम्यकतया धारित या स्थापित किया है। (सः) वह (सुधृतः) उत्तम प्रकार से धृत अर्थात् स्थापित हुआ तू (तपन्) तपता हुआ (एषि) आता है, और (विश्वा भूता) सब भूत-भौतिक जगत् को (अव चाकशत्) नीचे की ओर प्रकाशित करता हुआ आता है।
टिप्पणी -
[अत्रिः= अत्त्रिः (मन्त्र ४)। चाकशत् = चकासृ दीप्तौ। मासाय= सौरमास तथा चान्द्रमास। सौरमास की रचना तो १२ राशियों में सूर्य के संक्रमणों द्वारा होती है और चन्द्रमास की रचना नक्षत्रों में चन्द्र के संक्रमण द्वारा होती है। चन्द्रमा पर सूर्य के प्रकाश के कम और अधिक के पड़ने पर पूर्णिमा, अष्टमी तथा अमावास्या लक्षित होती हैं, और इस से चान्द्रमास का परिज्ञान होता है। इस लिये चान्द्रमास की रचना में भी सूर्य हेतु है। वेद में दोनों प्रकार के मास अभिप्रेत है। इसी लिये इन के दिनों में साम्य के लिये ३० दिनों का मलमास तथा अधिमास (Intercalary-month) का वर्णन वेदों में हुआ है (अथर्व० १३।३।८)]।