अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 32
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
चि॒त्रश्चि॑कि॒त्वान्म॑हि॒षः सु॑प॒र्ण आ॑रो॒चय॒न्रोद॑सी अ॒न्तरि॑क्षम्। अ॑होरा॒त्रे परि॒ सूर्यं॒ वसा॑ने॒ प्रास्य॒ विश्वा॑ तिरतो वी॒र्याणि ॥
स्वर सहित पद पाठचि॒त्र: । चि॒कि॒त्वान् । म॒हि॒ष: । सु॒ऽप॒र्ण: । आ॒ऽरो॒चय॑न् । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒न्तरि॑क्षम् । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । परि॑ । सूर्य॑म् । वसा॑ने॒ इति॑ । प्र । अ॒स्य॒ । विश्वा॑ । ति॒र॒त॒: । वी॒र्या᳡णि ॥२.३२॥
स्वर रहित मन्त्र
चित्रश्चिकित्वान्महिषः सुपर्ण आरोचयन्रोदसी अन्तरिक्षम्। अहोरात्रे परि सूर्यं वसाने प्रास्य विश्वा तिरतो वीर्याणि ॥
स्वर रहित पद पाठचित्र: । चिकित्वान् । महिष: । सुऽपर्ण: । आऽरोचयन् । रोदसी इति । अन्तरिक्षम् । अहोरात्रे इति । परि । सूर्यम् । वसाने इति । प्र । अस्य । विश्वा । तिरत: । वीर्याणि ॥२.३२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 32
भाषार्थ -
(चित्रः) विचित्र शक्ति वाला, (चिकित्वान्) चेतनावान्, (महिषः) महान् (सुर्पणः) सुपालक सूर्य पिण्ड या सूर्य पिण्ड का अधिष्ठाता-पुरुष, (रोदसी, अन्तरिक्षम्) द्युलोक-पृथिवी लोक और अन्तरिक्ष को (आ रोचयन्) प्रकाशित करता हुआ वर्तमान है। (सूर्य परि वसाने) सूर्य के आश्रय पर वसने वाले (अहोरात्रे) दिन-और-रात्रि (अस्य) इस की (विश्वा) विविध प्रकार की (वीर्याणि) शक्तियों को (प्रतिरतः) प्रकर्ष रूप में फैला रहे हैं, बढ़ा रहे हैं।
टिप्पणी -
[चिकित्वान् = चेतनावान् (निरुक्त ८।२।६; इध्मः (२) की व्याख्या में)। चेतना धर्म है चेतन का। अतः इस द्वारा सूर्य पिण्ड के अधिष्ठाता को सूचित किया जाता है। कित रोगापनयने अर्थ में सूर्य को भी निर्दिष्ट किया है। सूर्य, विविध रोगों का चिकित्सक हैं। दिन-रात्रि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है अतः मन्त्र में सूर्यपिण्ड का भी निर्देश हुआ है। वस्तुतः जैसे जीवित मनुष्य के सम्बन्ध में शरीर पिण्ड के गुणधर्मों का आरोप जीवात्मा में, और जीवात्मा के गुणधर्मो का आरोप शरीर पिण्ड में, बोल-चाल में होता है, इसी प्रकार इस सूक्त में अधिष्ठेय-सूर्यपिण्ड के गुणधर्मों का आरोप अधिष्ठातृ-पुरुष में, और अधिष्ठातृ-पुरुष के गुणधर्मों का आरोप अधिष्ठेय-सूर्यपिण्ड में प्रायः हुआ है। इस दृष्टि से सूक्त को "अध्यात्म" कहा है। "अहोरात्रे सूर्य परिवसाने" का शाब्दिक अर्थ है "सूर्य रूपी ओढ़नी को अपने सब ओर ओड़े हुए दिन-रात"]।