अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 19
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - आर्षी गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
त॒रणि॑र्वि॒श्वद॑र्शतो ज्योति॒ष्कृद॑सि सूर्य। विश्व॒मा भा॑सि रोचन ॥
स्वर सहित पद पाठत॒रणि॑: । वि॒श्वऽद॑र्शत: । ज्यो॒ति॒:ऽकृत् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ । विश्व॑म् । आ । भा॒सि॒ । रो॒च॒न॒ ॥२.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमा भासि रोचन ॥
स्वर रहित पद पाठतरणि: । विश्वऽदर्शत: । ज्योति:ऽकृत् । असि । सूर्य । विश्वम् । आ । भासि । रोचन ॥२.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
(सूर्य) हे सूर्य! (तरणिः) रात्रि के अन्धकार से तराने वाला, (विश्व दर्शतः) सब वस्तुओं का दर्शाने वाला, (ज्योतिष्कृत्) प्रकाश करने वाला (असि) तू है। (रोचन) हे रुचिकर तथा सुन्दर! (विश्वम् आभासि) सब को तू चमकाता हैं।