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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 28
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    यजु॑र्भिराप्यन्ते॒ ग्रहा॒ ग्रहै॒ स्तोमा॑श्च॒ विष्टु॑तीः। छन्दो॑भिरुक्थाश॒स्त्राणि॒ साम्ना॑वभृ॒थऽआ॑प्यते॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यजु॑र्भिरिति॒ यजुः॑ऽभिः। आ॒प्य॒न्ते॒। ग्रहाः॑। ग्रहैः॑। स्तोमाः॑। च॒। विष्टु॑तीः। विस्तु॑तीरिति॒ विऽस्तु॑तीः। छन्दो॑भि॒रिति॒ छन्दः॑ऽभिः। उ॒क्था॒श॒स्त्राणि॑। उ॒क्थ॒श॒स्त्राणीत्यु॑क्थऽश॒स्त्राणि॑। साम्ना॑। अ॒व॒भृ॒थ इत्य॑वऽभृ॒थः। आ॒प्य॒ते॒ ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यजुर्व्हिराप्यन्ते ग्रहा ग्रहै स्तोमाश्च विष्टुतीः । छन्दोभिरुक्थाशस्त्राणि साम्नावभृथऽआप्यते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यजुर्भिरिति यजुःऽभिः। आप्यन्ते। ग्रहः। ग्रहैः। स्तोमाः। च। विष्टुतीः। विस्तुतीरिति विऽस्तुतीः। छन्दोभिरिति छन्दःऽभिः। उक्थाशस्त्राणि। उक्थशस्त्राणीत्युक्थऽशस्त्राणि। साम्ना। अवभृथ इत्यवऽभृथः। आप्यते॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 28
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ ! তোমাদেরকে যে (যজুর্ভিঃ) যজুর্বেদোক্ত বিদ্যার অবয়ব দ্বারা (গ্রহাঃ) যদ্দ্বারা সমস্ত ক্রিয়াকান্ডের গ্রহণ করা হয় সেইগুলি ব্যবহার (গ্রহৈঃ) গ্রহগুলির দ্বারা (স্তোমাঃ) পদার্থের গুণের প্রশংসা (চ) এবং (বিষ্টুতীঃ) বিবিধ স্তুতিসকল (ছন্দোভিঃ) গায়ত্রাদি ছন্দ বা বিদ্বান্ এবং গুণগুলির স্তুতি কারীদের দ্বারা (উক্থাশস্ত্রাণি) কথন করিবার যোগ্য বেদের স্তোত্র ও শস্ত্র (আপ্যন্তে) প্রাপ্ত হয় তথা (সাম্না) সামবেদ দ্বারা (অবভৃথঃ) শোধন (আপ্যতে) প্রাপ্ত হয় তাহাদের উপযোগ যথাবৎ করা উচিত ॥ ২৮ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–কোনও মনুষ্য বেদাভ্যাস ব্যতীত সম্পূর্ণ সাঙ্গোপাঙ্গ বেদ বিদ্যাকে প্রাপ্ত করিতে সক্ষম হয় না ॥ ২৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়জু॑র্ভিরাপ্যন্তে॒ গ্রহা॒ গ্রহৈ॒ স্তোমা॑শ্চ॒ বিষ্টু॑তীঃ ।
    ছন্দো॑ভিরুক্থাশ॒স্ত্রাণি॒ সাম্না॑বভৃ॒থऽআ॑প্যতে ॥ ২৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়জুর্ভিরিত্যস্য হৈমবর্চির্ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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