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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 79
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    दृष्ट्वा प॑रि॒स्रुतो॒ रस॑ꣳ शु॒क्रेण॑ शु॒क्रं व्य॑पिब॒त् पयः॒ सोमं॑ प्र॒जाप॑तिः। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दृ॒ष्ट्वा। प॒रि॒स्रुत॒ इति॑ परि॒स्रुतः॑। रस॑म्। शु॒क्रेण॑। शु॒क्रम्। वि। अ॒पि॒ब॒त्। पयः॑। सोम॑म्। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दृष्ट्वा परिस्रुतो रसँ शुक्रेण शुक्रँ व्यपिबत्पयः सोमम्प्रजापतिः । ऋतेन सत्यमिन्द्रियँविपानँ शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दृष्ट्वा। परिस्रुत इति परिस्रुतः। रसम्। शुक्रेण। शुक्रम्। वि। अपिबत्। पयः। सोमम्। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु॥७९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 79
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–যে (পরিস্রুতঃ) সব দিক দিয়া প্রাপ্ত (প্রজাপতিঃ) প্রজার স্বামী রাজাদি জন (ঋতেন) যথার্থ ব্যবহার দ্বারা (সত্যম্) বর্ত্তমান উত্তম ওষধিসমূহে উৎপন্ন রসকে (দৃষ্ট্বা) বিচারপূর্বক দেখিয়া (শুক্রেণ) শুদ্ধ ভাব পূর্বক (শুক্রম্) শীঘ্র সুখকারী (পয়ঃ) পান করিবার যোগ্য (সোমম্) মহৌষধির রসকে তথা (রসম্) বিদ্যার আনন্দরূপ রসকে (ব্যপিবৎ) বিশেষ করিয়া পান করে বা গ্রহণ করে সে (অন্ধসঃ) শুদ্ধ অন্নাদির প্রাপক (বিপানম্) বিশেষ পানযুক্ত (শুক্রম্) বীর্য্য সম্পন্ন (ইন্দ্রিয়ম্) বিদ্বান্ সেবিত ইন্দ্রিয়গুলিকে এবং (ইন্দ্রস্য) পরম ঐশ্বর্য্যযুক্ত পুরুষের (ইদম্) এই (পয়ঃ) উত্তম রস যুক্ত (অমৃতম্) মৃত্যুকারক রোগ নিবারক (মধু) মধুরাদি গুণযুক্ত এবং (ইন্দ্রিয়ম্) ঈশ্বর কৃত ধনকে প্রাপ্ত হইবে ॥ ৭ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ– বৈদ্যক শাস্ত্রের রীতি দ্বারা উত্তম ওষধি সমূহের রস করিয়া উচিত সময়ে যতখানি চায় অতখানি পান করিবে, সে রোগ হইতে পৃথক হইয়া শরীর ও আত্মার বল বৃদ্ধি করিতে সক্ষম হয় ॥ ৭ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - দৃষ্ট্বা প॑রি॒স্রুতো॒ রস॑ꣳ শু॒ক্রেণ॑ শু॒ক্রং ব্য॑পিব॒ৎ পয়ঃ॒ সোমং॑ প্র॒জাপ॑তিঃ । ঋ॒তেন॑ স॒ত্যমি॑ন্দ্রি॒য়ং বি॒পান॑ꣳ শু॒ক্রমন্ধ॑স॒ऽইন্দ্র॑স্যেন্দ্রি॒য়মি॒দং পয়ো॒ऽমৃতং॒ মধু॑ ॥ ৭ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - দৃষ্ট্বেত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । প্রজাপতির্দেবতা । ভুরিগতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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