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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 50
    ऋषिः - दक्ष ऋषिः देवता - हिरण्यन्तेजो देवता छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    आ॒युष्यं वर्च्च॒स्यꣳ रा॒यस्पोष॒मौद्भि॑दम्।इ॒दꣳ हिर॑ण्यं॒ वर्च्च॑स्व॒ज्जैत्रा॒यावि॑शतादु॒ माम्॥५०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒यु॒ष्य᳖म्। व॒र्च॒स्य᳖म्। रा॒यः। पोष॑म्। औद्भि॑दम् ॥ इ॒दम्। हिर॑ण्यम्। वर्च॑स्वत्। जैत्रा॑य। आ। वि॒श॒ता॒त्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। माम् ॥५० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयुष्यँवर्चस्यँ रायस्पोषऔद्भिदम् । इदँ हिरण्यँवर्चस्वज्जैत्राया विशतादु माम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आयुष्यम्। वर्चस्यम्। रायः। पोषम्। औद्भिदम्॥ इदम्। हिरण्यम्। वर्चस्वत्। जैत्राय। आ। विशतात्। ऊँऽइत्यूँ। माम्॥५०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 50
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    पदार्थ -
    गतमन्त्र के सुन्दर जीवन के निर्माण का रहस्य 'हिरण्य' = तेज = 'वीर्य' की रक्षा में है। प्रस्तुत मन्त्र में उस हिरण्य की महिमा का वर्णन करते हैं। इसकी रक्षा के द्वारा अपनी सर्वांगीण उन्नति करनेवाला 'दक्ष' [दक्षू to grow] मन्त्र का ऋषि है। दक्ष कहता है कि (इदम् हिरण्यम्) = यह वीर्य १. (आयुष्यम्) = दीर्घजीवन का कारण है। ('मरणं विन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात्') = इस हिरण्यबिन्दु के नाश से नाश है, रक्षा से जीवन है । २. (वर्चस्यम्) = यह वर्चस्य है। उस वर्चस्वाला है जो शरीर में रोगों के मूल पर ही कुठाराघात करता है, शरीर को [वर्च् = to shine] पूर्ण नीरोग करके यह अपने धारक के जीवन को चमका देता है। ३. (रायस्पोषम्) = यह ज्ञान की सम्पत्ति का पोषण करता है। वेद में वेदों को 'रायः समुद्राँश्चतुरः 'चार सम्पत्ति - समुद्र कहा है। वीर्य ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। उस ज्ञानाग्नि के दीप्ति होने से हमारे ज्ञान - समुद्र का जल बढ़ता है। ४. (औद्भिदम्) = यह वीर्य [उद्भित्] हमें रोगों से ऊपर उठाकर सब विघ्न-बाधाओं का विदारण करके आगे बढ़ानेवाला होता है। ५. (इदम्) = यह (हिरण्यम्) = [हितरमणीयम्] अधिक-से-अधिक हमारा हित करनेवाला व रमणीय है। ४. यह (वर्चस्वत्) = वर्चस्वाला, दीप्ति को देनेवाला वीर्य (जैत्राय) = सब प्रकार की विजयों के लिए और अन्त में संसार का भी विजय करके मोक्षसाधन के लिए (माम्) = मुझे (उ) = निश्चय से (आविशतात्) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में, सारे शरीर में प्राप्त हो। मैं इस सोम [वीर्य] का पान करनेवाला बनूँ ।

    भावार्थ - भावार्थ- मैं हिरण्य के महत्त्व को समझू और उसके अन्तः प्रवेश के लिए पूर्ण प्रयत्नवाला होऊँ ।

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