Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 36
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - भगवान् देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मां धिय॒मुद॑वा॒ दद॑न्नः।भग॒ प्र नो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒ प्र नृभि॑र्नृ॒वन्तः॑ स्याम॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भग॑। प्रणे॑तः। प्रने॑तरिति॑ प्रऽने॑तः। भग॑। सत्य॑राध॒ इति॒ सत्य॑ऽराधः। भग॑। इ॒माम्। धिय॑म्। उत्। अ॒व॒। दद॑त्। नः॒ ॥ भग॑। प्र। नः॒। ज॒न॒य॒। गोभिः॑। अश्वैः॑। भग॑। प्र। नृभि॒रिति॒ नृऽभिः॑। नृ॒वन्त॒ इति॑ नृ॒ऽवन्तः॑। स्या॒म॒ ॥३६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमान्धियमुदवा ददन्नः । भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    भग। प्रणेतः। प्रनेतरिति प्रऽनेतः। भग। सत्यराध इति सत्यऽराधः। भग। इमाम्। धियम्। उत्। अव। ददत्। नः॥ भग। प्र। नः। जनय। गोभिः। अश्वैः। भग। प्र। नृभिरिति नृऽभिः। नृवन्त इति नृऽवन्तः। स्याम॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 36
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. हे (भग) = ऐश्वर्य (प्रणेत:) = तू प्रकृष्ट नेता है, जीवन यात्रा को उत्तमता से ले चलनेवाला है। यह धन २. (सत्यराधः) = सत्य को सिद्ध करनेवाला है। यहाँ 'सत्य' सब उत्तम कर्मों का प्रतीक है, प्रत्येक उत्तम कार्य धन से ही सिद्ध होता है। यज्ञों के लिए, स्वध्याय के लिए, अन्य सभी उत्तम कार्यों के लिए धन की आवश्यकता है। ३. हे नेतृत्व देनेवाले, सत्य को सिद्ध करनेवाले (भग) = ऐश्वर्य ! (नः) = हमारी (इमाम् धियम्) = इस बुद्धि की (ददत्) = हमारी आवश्यकताएँ पूर्ण करते हुए (उदव) = रक्षा कर। जिस समय गरीबी के कारण नमक, तेल, ईंधन की चिन्ता सताती है तब यह बुद्धि को लुप्त कर देती है। ऐश्वर्य हमें इन चिन्ताओं से मुक्त करके स्वस्थ बुद्धिवाला करता है। ४. हे (भग) = ऐश्वर्य ! तू (नः) = हमारा (गोभिः अश्वैः) = उत्तम गौवों व घोड़ों से प्रजनय प्रकृष्ट विकास कर। धन के द्वारा हमारे घर गौवों व घोड़ोंवाले हो सकते है। ५. हे (भग) = ऐश्वर्य ! तेरे द्वारा हम (प्रनृभिः) = उत्तम मनुष्यों से (नृवन्तः) = मनुष्योंवाले (प्रस्याम) = प्रकर्षेण हों। सामान्यतः हम संसार में देखते हैं कि हम सम्पन्न हैं तो हमारा घर बन्धु बान्धवों से भरपूर रहता है, निर्धनता आई और सब गये और घर उजड़ा-सा प्रतीत होने लगता है। [ख] सम्पन्न होने की स्थिति में मैं आये गये मान्य अतिथियों का ठीक स्वागत कर पाता हूँ और वे मेरे यहीं निवास करते हैं। मैं गरीब हूँ तो उनके आतिथ्य की मुझे सुविधा नहीं होती और मेरा घर ऐसे मनुष्यों का निवासस्थान नहीं बनता।

    भावार्थ - भावार्थ-धन नेतृत्व करता है, सत्य को सिद्ध करता है, बुद्धि को स्थिर रखता है, हमारी शक्ति व ज्ञान के विकास का कारण बनता है और हमारे घर को उत्तम पुरुषोंवाला बनाता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top