यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 17
नमो॒ हिर॑ण्यबाहवे सेना॒न्ये दि॒शां च॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ वृ॒क्षेभ्यो॒ हरि॑केशेभ्यः पशू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ श॒ष्पिञ्ज॑राय॒ त्विषी॑मते पथी॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमो॒ हरि॑केशायोपवी॒तिने॑ पु॒ष्टानां॒ पत॑ये॒ नमः॑॥१७॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। हिर॑ण्यबाहव॒ इति॒ हिर॑ण्यऽबाहवे। से॒ना॒न्य᳖ इति॑ सेना॒ऽन्ये᳖। दि॒शाम्। च॒। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। वृ॒क्षेभ्यः॑। हरि॑केशेभ्य॒ इति॒ हरि॑ऽकेशेभ्यः। प॒शू॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। श॒ष्पिञ्ज॑राय। त्विषी॑मते। त्विषी॑मत॒ इति॒ त्विषी॑ऽमते। प॒थी॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। हरि॑केशा॒येति॒ हरि॑ऽकेशाय। उ॒प॒वी॒तिन॒ इत्युप॑ऽवी॒तिने॑। पु॒ष्टाना॑म्। पत॑ये। नमः॑ ॥१७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो हिरण्यबाहवे सेनान्ये दिशाञ्च पतये नमो नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः पशूनाम्पतये नमो नमः शष्पिञ्जराय त्विषीमते पथीनाम्पतये नमो नमो हरिकेशायोपवीतिने पुष्टानाम्पतये नमो नमो बभ्लुशाय ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। हिरण्यबाहव इति हिरण्यऽबाहवे। सेनान्य इति सेनाऽन्ये। दिशाम्। च। पतये। नमः। नमः। वृक्षेभ्यः। हरिकेशेभ्य इति हरिऽकेशेभ्यः। पशूनाम्। पतये। नमः। नमः। शष्पिञ्जराय। त्विषीमते। त्विषीमत इति त्विषीऽमते। पथीनाम्। पतये। नमः। नमः। हरिकेशायेति हरिऽकेशाय। उपवीतिन इत्युपऽवीतिने। पुष्टानाम्। पतये। नमः॥१७॥
विषय - नाना रुद्र की नियुक्ति । उनका मानपद, अधिकार एवं नियन्त्रण ।
भावार्थ -
१. ( हिरण्यबाहवे सेनान्ये नमः ) बाहु पर सुवर्णरेखा या विशेष आभूषण या नाम या संख्या चिन्ह को धारण करने वाला अथवा ज्योति या सूर्य के समान प्रखर वीर्यवान् बाहुओं या सेनारूप तेजस्वी बाहुओं वाले, सेना नायक को बज्र का बल प्राप्त हो । २. (दिशां च पतये नमः) दिशाओं के पालक को अन्न आदि प्राप्त हो । ३. (हरिकेशेभ्यः) पीले या नीले पत्तों के समान पीले या नीले या मनोहरी केशों को धारण करने वाले (वृक्षेभ्यः) वृक्षों के समान सब के आश्रय दाता पुरुषों को (नमः) नमस्कार है । अथवा ( हरिकेशेभ्यः ) केशों को हरण करने वाले ( वृक्षेभ्यः ) शत्रुओं को ब्रश्चन करने वाले रुद्ररूप वीर पुरुषों को (नमः) अन्न बल प्राप्त हो । अथवा हरे पत्तोंवाले वृक्षों को (नमः) परशु से काटो । ४. ( पशूनां पतये नमः) पशुओं के पालक को (नमः) अन्न और बल पदाधिकार प्राप्त हो । ५. ( शय्पिञ्जराय ) सूखे घास के समान पति कान्तिमान् वर्ण वाले ( त्विषीमते) दीप्ति से युवक तेजस्वी पुरुष को अथवा 'शष्पि' = घास आदि को 'जर' =जलाने वाले, अग्नि वालों को, अथवा (शष्पिन्जराय नमः) छहों, आंख, नाक, रसना, कान, त्वचा और मन से ग्रहण योग्य विषय बन्धन को त्यागने हारे, (विषीमते ) कान्तिमान् को ( नमः ) अन्न आदि बल और आदर प्राप्त हो । ( पथीनाम् ) मार्गों के और मार्गगामी यात्रियों के ( पतये ) पालक मार्गाध्यक्ष को भी ( नमः ) राष्ट्र के अन्न में भाग एवं पदाधिकार, या बल प्राप्त हो । ( हरिकेशाय ) हरित अर्थात् नील केशनाले अति युवक ( उपवीतेन ) यज्ञोपवीत के धारण करने वाले बालब्रह्मचारी को नम / अन्न भाग और आदर, वीर्य सब प्राप्त हो । ( पुष्टानां पतये ) हृष्ट पुष्ट बालकों के पालक माता पिता को अधिकार एवं अन्नादि पदार्थ और आदर प्राप्त हो ।
अथवा – सेनानी, दिशाम्पति, वृक्षपति, पशुपति, शष्पिजरपति, पथी- केशपति, उपवीतपति, ये राष्ट्र के भिन्न २ विभागों के अधिकारी हैपरधव, हिरण्यबाहु, हरिकेश, त्विषीमान्, आदि ये मानवाचक पद हैं। उनका( नमः ) राष्ट्र के अन्न के भाग प्राप्त हों ।
अथवा - १. सुवर्ण आदि धन के बलपर शासन करने वाला, पुरुष 'हिरण्यबाहु' । २. सेना का नायक 'सेनानी' । ३. दिशाओं का पालक दिक्पाल, 'दिशाम्पाल' । ४. वृक्षों के समान शरण प्रद बड़े धनाढ्य लोग, सब शरण योग्य 'वृत्त' नामक अधिकारी । ५. केशों के हरण करने वाले स्वयंसेवक, लोग 'हरिकेश' । ६. पशुओं के पालक 'पशुपति' । ७. शष्प अथवा घास का चरने का प्रबन्ध कर्त्ता 'शपिञ्जर' । नगर में प्रकाश का प्रबन्धकर्त्ता 'त्विषीमान्' । ८. मार्गों का स्वामी 'पथीनांपति' । १. क्रेशों का हत्ती वैध 'हरिकेश' । १० यज्ञोपवीत धारण करने कराने वाले गुरुशिष्य 'उपवीति' । ११. पुष्ट पशुओं का पालक 'पुष्टपति' ये सब भिन्न २ नाम के रुद्र 'जातसंज्ञ' अर्थात् नाम पदधारी रुद्र कहाते हैं उनके ( नमः ) राष्ट्र में भाग अधिकार प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ( १७-४६ ) त्र्यशीती रुद्रा देवताः । निचृदतिधृतिः । षड्जः ।
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