यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 59
ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः
देवता - रुद्रा देवताः
छन्दः - आर्ष्युनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
1
ये भू॒ताना॒मधि॑पतयो विशि॒खासः॑ कप॒र्दिनः॑। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि॥५९॥
स्वर सहित पद पाठये। भू॒ताना॑म्। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतयः॒। वि॒शि॒खास॒ इति॑ विऽशि॒खासः॑। क॒प॒र्दिनः॑। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥५९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये भूतानामधिपतयो विशिखासः कपर्दिनः । तेषाँ सहस्रयोजने व धन्वानि तन्मसि॥
स्वर रहित पद पाठ
ये। भूतानाम्। अधिपतय इत्यधिऽपतयः। विशिखास इति विऽशिखासः। कपर्दिनः। तेषाम्। सहस्रयोजन इति सहस्रऽयोजने। अव। धन्वानि। तन्मसि॥५९॥
विषय - नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।
भावार्थ -
( ये ) जो ( भूतानाम् ) प्राणियों के ( अधिपतयः) अधिपति, पालक ( विशिखासः ) शिखा केश आदि रहित संन्यासी गण और ( कपर्दिनः ) जटिल ब्रह्मचारी लोग अथवा ( विशिखासः ) बिना शिखा के, बिना तुर्रे वाले और जो ( कपर्दिनः ) शिर पर मुकुट धारण करने वाले हैं ( तेषां सहस्र० ) इत्यादि पूर्ववत् ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - आसुर्यनुष्टुप् । गान्धारः ॥
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