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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 32
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - स्वराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    नमो॑ ज्ये॒ष्ठाय॑ च कनि॒ष्ठाय॑ च॒ नमः॑ पूर्व॒जाय॑ चापर॒जाय॑ च॒ नमो॑ मध्य॒माय॑ चापग॒ल्भाय॑ च॒ नमो॑ जघ॒न्याय च बु॒ध्न्याय च॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। ज्ये॒ष्ठाय॑। च॒। क॒नि॒ष्ठाय॑। च॒। नमः॑। पू॒र्व॒जायेति॑ पूर्व॒ऽजाय॑। च॒। अ॒प॒र॒जायेत्य॑पर॒ऽजाय॑। च॒। नमः॑। म॒ध्य॒माय॑। च॒। अ॒प॒ग॒ल्भायेत्य॑पऽग॒ल्भाय॑। च॒। नमः॑। ज॒घ॒न्या᳖य। च॒। बु॒ध्न्या᳖य। च॒ ॥३२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुध्न्याय च नमः सोम्याय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। ज्येष्ठाय। च। कनिष्ठाय। च। नमः। पूर्वजायेति पूर्वऽजाय। च। अपरजायेत्यपरऽजाय। च। नमः। मध्यमाय। च। अपगल्भायेत्यपऽगल्भाय। च। नमः। जघन्याय। च। बुध्न्याय। च॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 32
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    भावार्थ -
    ( ज्येष्ठाय च ) अपने से पूर्व उत्पन्न, आयु और बल में बड़े, (कनिष्टाय च ) आयु और मान में छोटे, ( पूर्वजाय च ) पूर्व उत्पन्न (अपरजाय च) पीछे उत्पन्न, ( मध्यमाय च ) बड़ों छोटों के बीच के भाई, ( अपगल्भाय च ) धृष्टतारहित अथवा एक का अन्तर छोड़ कर पैदा हुए तीसरे भाई ( जघन्याय च ) छोटे कर्म में लगे, या नीचे के पद पर स्थित और (बुध्न्याय च ) सब से नीचे के आश्रय रूप पुरुष इन सब को (नमः) यथायोग्य आदर सत्कार ऐश्वर्य, मान, पद प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - स्वराड् आर्षी त्रिष्टुप् । धैवतः॥

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