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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 44
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    प्र वा॑वृजे सुप्र॒या ब॒र्हिरे॑षा॒मा वि॒श्पती॑व॒ बीरि॑टऽइयाते।वि॒शाम॒क्तोरु॒षसः॑ पू॒र्वहू॑तौ वा॒युः पू॒षा स्व॒स्तये॑ नि॒युत्वा॑न्॥४४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। वा॒वृ॒जे। व॒वृ॒जे॒ऽइति॑ ववृजे। सु॒ऽप्र॒या इति॑ सुप्र॒याः। ब॒र्हिः। ए॒षा॒म्। आ। वि॒श्पती॑व। वि॒श्पती॒वेति॑ वि॒श्पती॑ऽइव। बीरि॑टे। इ॒या॒ते॒ ॥ वि॒शाम्। अ॒क्तोः। उ॒षसः॑। पू॒र्वहू॑ता॒विति॑ पू॒र्वऽहू॑तौ। वा॒युः। पू॒षा। स्व॒स्तये॑। नि॒युत्वा॑न् ॥४४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र वावृजे सुप्रया बर्हिरेषामा विश्पतीव बीरिटऽइयाते । विशामक्तोरुषसः पूर्वहूतौ वायुः पूषा स्वस्तये नियुत्वान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। वावृजे। ववृजेऽइति ववृजे। सुऽप्रया इति सुप्रयाः। बर्हिः। एषाम्। आ। विश्पतीव। विश्पतीवेति विश्पतीऽइव। बीरिटे। इयाते॥ विशाम्। अक्तोः। उषसः। पूर्वहूताविति पूर्वऽहूतौ। वायुः। पूषा। स्वस्तये। नियुत्वान्॥४४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 44
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন (পূর্বহূতৌ) পূর্বপুরুষদের হইতে প্রশংসা কৃত (সুপ্রয়াঃ) সুন্দর প্রকার গমনশীল (নিয়ুত্বান্) শীঘ্রকারী বেগাদি গুণযুক্ত (বায়ুঃ) পবন ও (পূষা) সূর্য্য (এষাম্) এই সব মনুষ্যদিগের (স্বস্তয়ে) সুখের জন্য (প্র, বাবৃজে) প্রকর্ষতা পূর্বক গমন করে, (বিশাম্) প্রজাদিগের মধ্যে (বিশ্পতীব) প্রজারক্ষক দুই রাজাদের তুল্য (বীরিটে) অন্তরিক্ষে (আ, ইয়াতে) আসা-যাওয়া করে, সেইরূপ (অক্তোঃ) রাত্রি ও (উষসঃ) দিনের (বর্হিঃ) জলকে প্রাপ্ত হয় ॥ ৪৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমা ও বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ! যে সব বায়ু ন্যায়কারী রাজা সদৃশ পালক তাহারা ঈশ্বরের দ্বারা নির্মিত, ইহা জানা উচিত ॥ ৪৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - প্র বা॑বৃজে সুপ্র॒য়া ব॒র্হিরে॑ষা॒মা বি॒শ্পতী॑ব॒ বীরি॑টऽইয়াতে ।
    বি॒শাম॒ক্তোরু॒ষসঃ॑ পূ॒র্বহূ॑তৌ বা॒য়ুঃ পূ॒ষা স্ব॒স্তয়ে॑ নি॒য়ুত্বা॑ন্ ॥ ৪৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - প্র বাবৃজ ইত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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