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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 48
    ऋषिः - प्रतिक्षत्र ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अग्न॒ऽइन्द्र॒ वरु॑ण॒ मित्र॒ देवाः॒ शर्द्धः॒ प्र य॑न्त॒ मारु॑तो॒त वि॑ष्णो।उ॒भा नास॑त्या रु॒द्रोऽअ॑ध॒ ग्नाः पू॒षा भगः॒ सर॑स्वती जुषन्त॥४८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। इन्द्र॑। वरु॑ण। मित्र॑। देवाः॑। शर्द्धः॑। प्र। य॒न्त॒। मारु॑त। उ॒त। वि॒ष्णो॒ऽइति॑ विष्णो ॥ उ॒भा। नास॑त्या। रु॒द्रः। अध॑। ग्नाः। पू॒षा। भगः॑। सर॑स्वती। जु॒ष॒न्त॒ ॥४८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नऽइन्द्र वरुण मित्र देवाः शर्धः प्रयन्त मारुतोत विष्णो । उभा नासत्या रुद्रोऽअध ग्नाः पूषा भगः सरस्वती जुषन्त ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। इन्द्र। वरुण। मित्र। देवाः। शर्द्धः। प्र। यन्त। मारुत। उत। विष्णोऽइति विष्णो॥ उभा। नासत्या। रुद्रः। अध। ग्नाः। पूषा। भगः। सरस्वती। जुषन्त॥४८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 48
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (অগ্নে) বিদ্যাপ্রকাশক (ইন্দ্র) মহান্ ঐশ্বর্য্যসম্পন্ন (বরুণ) অতি শ্রেষ্ঠ (মিত্র) মিত্র (মারুত) মনুষ্যদিগের মধ্যে বর্ত্তমান ব্যক্তি (উত) এবং (বিষ্ণো) ব্যাপনশীল (দেবাঃ) বিদ্বান্ তোমরা! আমাদের জন্য (শর্দ্ধঃ) শরীর ও আত্মার বলকে (প্র, য়ন্তু) প্রদান কর (উভা) উভয় (নাসত্যা) সত্যস্বরূপ অধ্যাপক ও উপদেশক (রুদ্রঃ) দুষ্টদিগের রোদয়িতা (গ্নাঃ) সুশিক্ষিত বাণী (পূষা) পোষক (ভগঃ) ঐশ্বর্য্যবান্ (অধ) এবং তদনন্তর (সরস্বতী) প্রশস্ত জ্ঞানযুক্তা স্ত্রী এইগুলি সব আমাদের (জুষন্ত) সেবন করুক ॥ ৪৮ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, বিদ্বান্দিগের সেবন দ্বারা বিদ্যা ও উত্তম শিক্ষাকে গ্রহণ করিয়া অন্যদেরকেও বিদ্বান্ করিবে ॥ ৪৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অগ্ন॒ऽইন্দ্র॒ বর॑ুণ॒ মিত্র॒ দেবাঃ॒ শর্দ্ধঃ॒ প্র য়॑ন্ত॒ মার॑ুতো॒ত বি॑ষ্ণো ।
    উ॒ভা নাস॑ত্যা রু॒দ্রোऽঅ॑ধ॒ গ্নাঃ পূ॒ষা ভগঃ॒ সর॑স্বতী জুষন্ত ॥ ৪৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অগ্ন ইত্যস্য প্রতিক্ষত্র ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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