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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 58
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    दस्रा॑ यु॒वाक॑वः सु॒ता नास॑त्या वृ॒क्तब॑र्हिषः।आ या॑तꣳ रुद्रवर्त्तनी॥ तं प्र॒त्नथा॑। अ॒यं वे॒नः॥५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दस्रा॑। यु॒वाक॑वः। सु॒ताः। नास॑त्या। वृ॒क्तब॑र्हिष॒ इति॑ वृ॒क्तऽब॑र्हिषः। आ। या॒त॒म्। रु॒द्र॒व॒र्त्त॒नी॒ऽइति॑ रुद्रवर्त्तनी ॥५८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दस्रा युवाकवः सुता नासत्या वृक्तबर्हिषः । आ यातँ रुद्रवर्तनी । तम्प्रत्नथाऽअयँवेनः॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दस्रा। युवाकवः। सुताः। नासत्या। वृक्तबर्हिष इति वृक्तऽबर्हिषः। आ। यातम्। रुद्रवर्त्तनीऽइति रुद्रवर्त्तनी॥५८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 58
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (নাসত্যা) অসত্য আচরণ হইতে পৃথক (রুদ্রবর্ত্তনী) দুষ্টরোদক ন্যায়াধীশ তুল্য আচরণযুক্ত (দস্রা) দুষ্ট-নিবারক বিদ্বান্গণ! যাহা (বৃক্তবর্হিষঃ) যজ্ঞ হইতে পৃথক অর্থাৎ ভোজনার্থ (য়ুবাকবঃ) তোমাকে কামনাকারী (সুতাঃ) সিদ্ধকৃত পদার্থ আছে তাহাদেরকে তোমরা (আ, য়াতম্) সম্যক্ প্রকার প্রাপ্ত হও ॥ ৫৮ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–বিদ্বান্দিগের উচিত যে, যাহারা বিদ্যাসমূহের কামনা করে তাহাদেরকে বিদ্যা দিবে ॥ ৫৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - দস্রা॑ য়ু॒বাক॑বঃ সু॒তা নাস॑ত্যা বৃ॒ক্তব॑র্হিষঃ ।
    আ য়া॑তꣳ রুদ্রবর্ত্তনী ॥ ৫৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - দস্রেত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । অশ্বিনৌ দেবতে । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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