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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 67
    ऋषिः - नृमेध ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    अनु॑ ते॒ शुष्मं॑ तु॒रय॑न्तमीयतुः क्षो॒णी शिशुं॒ न मा॒तरा॑।विश्वा॑स्ते॒ स्पृधः॑ श्नथयन्त म॒न्यवे॑ वृ॒त्रं यदि॑न्द्र॒ तूर्व॑सि ॥६७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑। ते॒। शुष्म॑म्। तु॒रय॑न्तम्। ई॒य॒तुः॒। क्षो॒णीऽइति॑ क्षो॒णी। शिशु॑म्। न। मा॒तरा॑ ॥ विश्वाः॑। ते॒। स्पृधः॑। श्न॒थ॒य॒न्त॒। म॒न्यवे॑। वृ॒त्रम्। यत्। इ॒न्द्र॒। तूर्व॑सि ॥६७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु ते शुष्मन्तुरयन्तमीयतुः क्षोणी शिशुन्न मातरा । विश्वास्ते स्पृधः श्नथयन्त मन्यवे वृत्रँयदिन्द्र तूर्वसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अनु। ते। शुष्मम्। तुरयन्तम्। ईयतुः। क्षोणीऽइति क्षोणी। शिशुम्। न। मातरा॥ विश्वाः। ते। स्पृधः। श्नथयन्त। मन्यवे। वृत्रम्। यत्। इन्द्र। तूर्वसि॥६७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 67
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (ইন্দ্র) শত্রুদিগের নাশক রাজন্! আপনার (তুরয়ন্তম্) শত্রুদিগকে মারিতে থাকিয়া (শুষ্মম্) শত্রুদিগের শোষক বলকে (শিশুম্) বালককে (মাতরা) মাতা-পিতার (ন) সমান (ক্ষোণী) স্বপরভূমি (অনু, ঈয়তুঃ) অনুকূল প্রাপ্ত হয়, সেই (তে) আপনার (মন্যবে) ক্রোধ দ্বারা (বিশ্বাঃ, স্পৃধঃ) সব শত্রুদিগের ঈর্ষাকারী সেনা (শ্নথয়ন্ত) নষ্ট-ভ্রষ্ট নিহত করাহয় (য়ৎ) যে (বৃত্তম্) ন্যায়ের নিরোধক শত্রুকে আপনি (তূর্বসি) বধ করেন, সে পরাজিত হইয়া যায় ॥ ৬৭ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যে সব রাজপুরুষদের হৃষ্ট-পুষ্ট যুদ্ধের প্রতিজ্ঞা করিতে থাকা সেনা হয় তাহারা সর্বত্র বিজয় প্রাপ্ত হইবে ॥ ৬৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অনু॑ তে॒ শুষ্মং॑ তু॒রয়॑ন্তমীয়তুঃ ক্ষো॒ণী শিশুং॒ ন মা॒তরা॑ ।
    বিশ্বা॑স্তে॒ স্পৃধঃ॑ শ্নথয়ন্ত ম॒ন্যবে॑ বৃ॒ত্রং য়দি॑ন্দ্র॒ তূর্ব॑সি ॥ ৬৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অনু তে শুষ্মমিত্যস্য নৃমেধ ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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