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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - शङ्कुमती गायत्री स्वरः - षड्जः
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    यु॒क्तेन॒ मन॑सा व॒यं दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। स्व॒र्ग्याय॒ शक्त्या॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒क्तेन॑। मन॑सा। व॒यम्। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। स्व॒र्ग्या᳖येति॑ स्वः॒ऽग्या᳖य॒। शक्त्या॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युक्तेन मनसा वयन्देवस्य सवितुः सवे । स्वर्ग्याय शक्त्या ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युक्तेन। मनसा। वयम्। देवस्य। सवितुः। सवे। स्वर्ग्यायेति स्वःऽग्याय। शक्त्या॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 2
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    पदार्थ -

    १. पिछले मन्त्र में मन को विषयों से हटाकर आत्मतत्त्व में लगाने का प्रतिपादन था। यही ‘योग’ कहलाता है। निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा इस योग को अनिर्विण्ण चित्त से सदा करते ही रहना चाहिए। इस योग के द्वारा ( युक्तेन ) = एकाग्र हुए ( मनसा ) = मन से ( वयम् ) = हम ( सवितुः देवस्य ) = उस प्रेरक दिव्य गुणों के पुञ्ज प्रभु की ( सवे ) =  प्रेरणा में, अर्थात् उसकी प्रेरणा के अनुसार ( शक्त्या ) = यथाशक्ति ( स्वर्ग्याय ) = स्वर्गसाधक कार्यों के लिए प्रयत्न करें। 

    २. योग के अभ्यास से हमने मन को स्थिर करने का प्रयत्न किया, परन्तु इस स्थिरता को नष्ट न होने देने के लिए आवश्यक है कि हम इसे किन्हीं उपयुक्त कर्मों में लगाये रक्खें अन्यथा यह फिर विषयोन्मुख हो हमें निरन्तर भटकानेवाला हो जाएगा। मन की दिशा को ही बदला जा सकता है, इसे बिलकुल समाप्त नहीं किया जा सकता। इसका वेग उत्तम कर्मों की दिशा में हो जाने पर यह सदा उन्हीं में लगा रहेगा और हमारे जीवन को स्वर्गतुल्य बना देगा। 

    ३. उत्तम कर्म वे ही हैं जिनकी प्रेरणा प्रभु से दी गई है। वस्तुतः धर्म की अन्तिम कसौटी ही यह है कि जो हमारी आत्मा को, अर्थात् अन्तःस्थित प्रभु को प्रिय लगे, अतः मन को वश में करके हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान-प्राप्ति में लगाये रक्खें और कर्मेन्द्रियों को यज्ञादि उत्तम कर्मों में व्यापृत किये रहें। यही जीवन को सुखी बनाने का मार्ग है। यही सच्चा कर्मयोग है। 

    ४. अकर्मण्य पुरुष का मन फिर पापों में जाने लगता है, अतः उसे उत्तम कर्मों में ही लगाये रखना है।

    भावार्थ -

    भावार्थ — १. मन को युक्त करें २. प्रभु से आदिष्ट कर्मों में उसे यथाशक्ति लगाये रक्खें ३. यही स्वर्ग-प्राप्ति का मार्ग है।

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