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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 41
    ऋषिः - विश्वमना ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    उदु॑ तिष्ठ स्वध्व॒रावा॑ नो दे॒व्या धि॒या। दृ॒शे च॑ भा॒सा बृ॑ह॒ता सु॑शु॒क्वनि॒राग्ने॑ याहि सुश॒स्तिभिः॑॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। ऊँ॒ इत्यूँ॑। ति॒ष्ठ॒। स्व॒ध्व॒रेति॑ सुऽअध्वर। अव॑। नः॒। दे॒व्या। धि॒या। दृ॒शे। च॒। भा॒सा। बृ॒ह॒ता। सु॒शु॒क्वनि॒रिति॑ सुऽशु॒क्वनिः॑। आ। अ॒ग्ने॒। या॒हि॒। सु॒श॒स्तिभि॒रिति॑ सुश॒स्तिऽभिः॑ ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदु तिष्ठ स्वध्वरावा नो देव्या धिया । दृशे च भासा बृहता शुशुक्वनिराग्ने याहि सुशस्तिभिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। ऊँ इत्यूँ। तिष्ठ। स्वध्वरेति सुऽअध्वर। अव। नः। देव्या। धिया। दृशे। च। भासा। बृहता। सुशुक्वनिरिति सुऽशुक्वनिः। आ। अग्ने। याहि। सुशस्तिभिरिति सुशस्तिऽभिः॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 41
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    पदार्थ -

    प्रभु कहते हैं कि — १. ( उ ) = निश्चय से ( उत्तिष्ठ ) = उठ खड़ा हो। उदास व निराश बनकर पड़ा मत रह। 

    २. ( स्वध्वरावा ) = [ सु अध्वर अव ] = उत्तम—हिंसा-शून्य कर्मों की रक्षा करनेवाला बन। 

    ३. हे ( अग्ने ) = आगे बढ़नेवाले जीव! ( नः ) = हमारे पास ( आयाहि ) = आ! किस प्रकार! [ क ] ( देव्या धिया ) = [ देवनस्वभावया क्रीडापरया बुद्ध्या—म० ] इस संसार में प्रत्येक स्थिति को क्रीड़ापरक बुद्धि sportsman like spirit से लेते हुए, जय-पराजय में सम रहते हुए। दूसरे शब्दों में, स्थितप्रज्ञता के द्वारा। [ ख ] ( दृशे च ) = और सब संसार को ठीक रूप में देखने के लिए ( बृहता भासा ) = वृद्धिशील दीप्ति से—बढ़ते हुए ज्ञान से। नैत्यिक स्वाध्याय के द्वारा बढ़ती हुई ज्ञान-दीप्ति ही तो तुझ मेरे सान्निध्य को प्राप्त कराएगी। [ ग ] इस प्रकार ( सुशुक्वनिः ) = [ साधु शुचो रश्मीन् वनति सम्भजतिम० ]। उत्तम ज्ञान-दीप्तियों को प्राप्त करनेवाला तू ( सुशस्तिभिः ) = उत्तम कीर्तियों के द्वारा। उत्तम कर्मों के कारण प्राप्त यश के द्वारा तू हमारे समीप आनेवाला बन। 

    ४. संक्षेप में, हृदय में दिव्य विचारों के द्वारा अथवा व्यवसायात्मिका बुद्धि के द्वारा, मस्तिष्क में वर्धमान ज्ञानाग्नि के द्वारा तथा हाथों में उत्तम यशस्वी कर्मों के द्वारा तू हमारे पास आनेवाला बन।

    भावार्थ -

    भावार्थ — तू उठ खड़ा हो, अहिंसात्मक कर्मोंवाला बन। पवित्र बुद्धि, बढ़ते हुए ज्ञान तथा उत्तम प्रशंसनीय कर्मों से, हमें प्राप्त हो।

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