यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 5
ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः
देवता - विद्वांसो देवता
छन्दः - निचृदभिकृतिः
स्वरः - ऋषभः
0
आ॒च्छच्छन्दः॑ प्र॒च्छच्छन्दः॑ सं॒यच्छन्दो॑ वि॒यच्छन्दो॑ बृ॒हच्छन्दो॑ रथन्तर॒ञ्छन्दो॑ निका॒यश्छन्दो॑ विव॒धश्छन्दो॒ गिर॒श्छन्दो॒ भ्रज॒श्छन्दः॑ स॒ꣳस्तुप् छन्दो॑ऽनु॒ष्टुप् छन्द॒ऽएव॒श्छन्दो॒ वरि॑व॒श्छन्दो॒ वय॒श्छन्दो॑ वय॒स्कृच्छन्दो॒ विष्प॑र्द्धा॒श्छन्दो॑ विशा॒लं छन्द॑श्छ॒दिश्छन्दो॑ दूरोह॒णं छन्द॑स्त॒न्द्रं॒ छन्दो॑ऽअङ्का॒ङ्कं छन्दः॑॥५॥
स्वर सहित पद पाठआ॒च्छदित्या॒ऽछत्। छन्दः॑। प्र॒च्छदिति॑ प्र॒ऽछत्। छन्दः॑। सं॒यदिति॑ स॒म्ऽयत्। छन्दः॑। वि॒यदिति॑ वि॒ऽयत्। छन्दः॑। बृ॒हत्। छन्दः॑। र॒थ॒न्त॒रमिति॑ रथम्ऽत॒रम्। छन्दः॑। नि॒का॒य इति॑ निऽका॒यः। छन्दः॑। वि॒व॒ध इति॑ विऽव॒धः। छन्दः॑। गिरः॑। छन्दः॑। भ्रजः॑। छन्दः॑। स॒ꣳऽस्तुबि॒ति॑ स॒म्ऽस्तुप्। छन्दः॑। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नु॒ऽस्तुप्। छन्दः॑। एवः॑। छन्दः॑। वरि॑वः। छन्दः॑। वयः॑। छन्दः॑। व॒य॒स्कृत्। व॒यः॒कृदिति॑ वयः॒ऽकृत्। छन्दः॑। विष्प॑र्द्धाः॒। विस्प॑र्द्धा॒ इति॒ विऽस्प॑र्द्धाः। छन्दः॑। वि॒शा॒लमिति॑ विऽशा॒लम्। छन्दः॑। छ॒दिः। छन्दः॑। दू॒रो॒ह॒णमिति॑ दुःऽरो॒ह॒णम्। छन्दः॑। त॒न्द्रम्। छन्दः॑। अ॒ङ्का॒ङ्कमित्य॑ङ्कऽअ॒ङ्कम्। छन्दः॑ ॥५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आच्छच्छन्दः प्रच्छच्छन्दः सँयच्छन्दो वियच्छन्दो बृहच्छन्दो रथन्तरञ्छन्दो निकायश्छन्दो विवधश्छन्दो गिरश्छन्दः भ्रजश्छन्दः सँस्तुप्छन्दोनुष्टुप्छन्दऽएवश्छन्दो वरिवश्छन्दो वयश्छन्दो वयस्कृच्छन्दो विष्पर्धाश्छन्दो विशालञ्छन्दश्छदिश्छन्दो दूरोहणञ्छन्दन्तन्द्रञ्छन्दऽअङ्काङ्कं छन्दः ॥
स्वर रहित पद पाठ
आच्छदित्याऽछत्। छन्दः। प्रच्छदिति प्रऽछत्। छन्दः। संयदिति सम्ऽयत्। छन्दः। वियदिति विऽयत्। छन्दः। बृहत्। छन्दः। रथन्तरमिति रथम्ऽतरम्। छन्दः। निकाय इति निऽकायः। छन्दः। विवध इति विऽवधः। छन्दः। गिरः। छन्दः। भ्रजः। छन्दः। सꣳऽस्तुबिति सम्ऽस्तुप्। छन्दः। अनुष्टुप्। अनुस्तुबित्यनुऽस्तुप्। छन्दः। एवः। छन्दः। वरिवः। छन्दः। वयः। छन्दः। वयस्कृत्। वयःकृदिति वयःऽकृत्। छन्दः। विष्पर्द्धाः। विस्पर्द्धा इति विऽस्पर्द्धाः। छन्दः। विशालमिति विऽशालम्। छन्दः। छदिः। छन्दः। दूरोहणमिति दुःऽरोहणम्। छन्दः। तन्द्रम्। छन्दः। अङ्काङ्कमित्यङ्कऽअङ्कम्। छन्दः॥५॥
विषय - आच्छत्+अङ्काङ्कम् [गोदों की गोद]
पदार्थ -
१. (आच्छत् छन्दः) = [समन्तात् पापनिवारकं कर्म - द०] अच्छे प्रकार पापों की निवृत्ति करनेवाले कर्म की तुम्हारी कामना हो। अपने को पाप से बचाने के लिए हम सदा कर्मों में लगे रहें । २. (प्रच्छत् छन्दः) = [ प्रयत्नेन दुष्टस्वभावदूरीकरणार्थं कर्म - द० ] प्रयत्न से दुष्ट स्वभाव को दूर करनेवाले कर्म की तुम्हारी कामना हो । जहाँ हम पापकर्मों से अपने को बचाएँ, वहाँ अपने जीवन को इस प्रकार चलाने का ध्यान करें कि हमारा स्वभाव दुष्ट न हो जाए। ३. (संयत् छन्दः) = संयम की हमारी कामना हो। हम मन को पवित्र रखकर संयमी बनने का प्रयत्न करें। ४. (वियत् छन्दः) = विविध यत्नों की हमारी इच्छा हो। हम अपने जीवन को सदा अच्छा बनाने का यत्न करें। ५. (बृहत् छन्दः) = [बृहि वृद्धौ] बहुत वृद्धि की हमारी कामना बनी रहे। हमारे सब यत्न वृद्धि के लिए हों। ६. (रथन्तरं छन्दः) = हमें यह ध्यान रहे कि इस शरीररूप रथ से हमने संसार को तैरना है। इस प्रकार जीवन-यात्रा को पूर्ण करने की हमारी प्रबल कामना हो। ७. (निकायः छन्दः) = [निकाय = The supreme being] जीवन-यात्रा को पूर्ण करके उस पुरुषोत्तम को, जो वास्तव में हमारा घर है, प्राप्त करने की हमारी कामना हो । निकाय शब्द का अर्थ गुणों का समूह भी है। हम अपने जीवन में अधिक-से-अधिक गुणों का संग्रह करने की कामनावाले हों। ८. (विवधः छन्दः) = [विशिष्टो वधः] अन्तःशत्रुओं का नाश ही 'विशिष्ट' वध है, उसकी हमें इच्छा करनी चाहिए। ९. (गिरः छन्दः) = इनका वध कर सकने के लिए वेदवाणियों की हमारी कामना हो। इन ज्ञानवाणियों को अपना व्यसन बनाकर ही हम काम-क्रोधादि से उत्पन्न व्यसनों का वध कर पाएँगे। १०. (भ्रजः छन्दः) = ज्ञान को अपना व्यसन बनाकर हम ज्ञान की दीप्ति से चमकने की कामना करें। [भ्रा दीप्तौ ] ११. (संस्तुप् छन्दः) = इस ज्ञान दीप्ति को प्राप्त करके अपनी देदीप्यमान ज्ञानाग्नि में हम कामादि को भस्म करने की कामनावाले बनें। कामादि को (सम्) = सम्यक्, (पूर्णतया स्तुप्) = रोक देने की इच्छा करें। इसी उद्देश्य से १२. (अनुष्टुप् छन्दः) = अनुक्षण प्रभु-स्तवन की हमारी कामना हो। इस प्रभु स्मरण से हमें १३. (एव: छन्दः) = ज्ञान प्राप्त होगा। इस अन्त: ज्ञानस्रोत को प्रवाहित करने की कामनावाले हम बनें। १४. (वरिवः छन्दः) = ज्ञान को प्राप्त करने के लिए 'गुरु-शुश्रूषा' की हमारी कामना हो। 'तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सवेया' यह ज्ञान प्रणिपात, परिप्रश्न व सेवा से प्राप्त होता है। १५. वस्तुत: मातृ-सेवा, पितृ-सेवा, आचार्य सेवा व लोक सेवा के लिए ही (वयः छन्दः) = जीवन - तन्तु का विस्तार हमारी इच्छा का विषय बने [वेञ् तन्तुसन्ताने] । १६. इस जीवन विस्तार के लिए (वयस्कृत् छन्दः) = हम उन्हीं अन्नों व भोज्यद्रव्यों की कामना करें जो जीवन-तन्तु को दीर्घ करनेवाले हों । १७. इस दीर्घ जीवन में (विष्पर्द्धाः छन्दः) = हम विशिष्ट स्पर्धा की कामना करें। गुणों के दृष्टिकोण से औरों से आगे बढ़ने का ध्यान करें। स्पर्धापूर्वक निरन्तर आगे बढ़ते हुए १८. (विशालं छन्दः) = हम अपने को विशाल बनाने की कामनावाले हों । १९. इस विशालता की ओर चलते हुए (छदिः छन्दः) [छद अपवारणे ] = विघ्नों को दूर करने की हमारी कामना हो । विघ्न हमें हतोत्साह करनेवाले न हो जाएँ। २०. इन विघ्नों को दूर करते हुए हम ऊपर और ऊपर उठते चलें। वेद के 'पृष्ठात् पृथिव्या अहमन्तरिक्षम्, अन्तरिक्षाद्दिवमारुहं दिवो नाकस्य पृष्ठात् स्वर्ज्योतिरगामहम्' इन शब्दों के अनुसार हम पृथिवी से अन्तरिक्ष में और अन्तरिक्ष से द्युलोक में पहुँचनेवाले हों। (दूरोहणं छन्दः) = [दुःखेन रोद्धुं योग्यम्] जहाँ तक पहुँचना सुगम नहीं, उस आदित्य तक पहुँचने का संकल्प करें। [असौ वा आदित्यो दूरोहणं छन्दः- श० ८।५।२६] । २१. (तन्द्रं छन्दः) = हमारा एक ही ध्येय हो (तन्) = शक्तियों का विस्तार तथा (द्र) = विघ्नों का विद्रावण । हम शक्तियों के विस्तार व विघ्न नाश की प्रबल कामना करें । २२. इस प्रकार निरन्तर उन्नति के लिए प्रयत्नशील होते हुए हम 'अङ्क + अङ्क छन्दः 'गोदों की भी गोद- उस सर्वोत्तम गोद में, अर्थात् प्रभु के समीप पहुँचने की इच्छावाले हों। यह गोद ही 'अभयम्' पूर्ण निर्भयता देनेवाली है।
भावार्थ - भावार्थ- हम आच्छत् छन्द से अङ्काङ्क छन्द तक पहुँचनेवाले बनें। पाप निवारणात्मक कर्मों को करते हुए हम प्रभु की गोद में पहुँचने का ध्यान करें।
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal