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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 23
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    पय॑सो रू॒पं यद्यवा॑ द॒ध्नो रू॒पं क॒र्कन्धू॑नि। सोम॑स्य रू॒पं वाजि॑नꣳ सौ॒म्यस्य॑ रू॒पमा॒मिक्षा॑॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पय॑सः। रू॒पम्। यत्। यवाः॑। द॒ध्नः। रू॒पम्। क॒र्कन्धू॑नि। सोम॑स्य। रू॒पम्। वाजि॑नम्। सौ॒म्यस्य॑। रू॒पम्। आ॒मिक्षा॑ ॥२३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पयसो रूपँयद्यवा दध्नो रूपङ्कर्कन्धूनि । सओमस्य रूपँवाजिनँ सौम्यस्य रूपमामिक्षा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पयसः। रूपम्। यत्। यवाः। दध्नः। रूपम्। कर्कन्धूनि। सोमस्य। रूपम्। वाजिनम्। सौम्यस्य। रूपम्। आमिक्षा॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 23
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    भावार्थ -
    ( पयसः रूपं यद् यवाः ) जौ पयस् दूध के रूप हैं । दूध जिस प्रकार शरीर को पोषक है उसी प्रकार यव, अन्न, राष्ट्र की प्रजा को पुष्ट करता है । 'पयः' पुष्टिकारक वीर्य शरीर का पोषक है । यव, शत्रुओं को दूर करने में समर्थ सैनिक वीरजन राष्ट्र को पुष्ट करते हैं । ( दध्नः रूपं कर्कन्धूनि ) दधि का रूप 'कर्कन्धू' अर्थात् पके बेरी के फल के समान है । दही वीर्य उत्पन्न करता है । पके बेर भी बल उत्पन्न करते हैं । (दध्नः) राष्ट्र में धारण समर्थ बल कांटेदार बेरी की झाड़ियों के समान हैं । बाड़ पशुओं से कोमल विटपों को खाये जाने से बचाती हैं उसी प्रकार शस्त्र धारक वीर सैनिक राज्य के 'दधि' राष्ट्र धार का बल का स्वरूप हैं । ‘कर्कन्धू’—कर्क कण्टकं दधाति इति । कर्कन्धूः । इति दया० उणा० । अथवा कर्कान् कण्टकान् शत्रून् धुन्वते इति कर्कन्धूनि सेनाबलानि । कांटे रखने से ये कण्टकरूप शत्रुओं को धुन देने वाले वीर 'कर्कन्धू' हैं । ( सोमस्य रूपं वाजिनम् ) सोम का रूप 'वाजिन' है । 'सोम', राजा 'वाज' अर्थात् अन्न और बल के स्वामी का रूप है । ( सोमस्य रूपम् आमिक्षा) सोम, राजा का रूप 'आमिक्षा' है अर्थात् प्रजा पर सब सुखों का वर्षण अथवा राज्य के मुख्य पद पर अभिषेक क्रिया होना, अथवा सब ओर से दुष्ट पुरुषों का नाश करना ही राजा का रूप है । 'आमिक्षा' - समन्तात् मेषति हिनस्ति इत्यामिक्षा | दया० उणा० । मेहति सिञ्चति वा सा आमिक्षा |

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सोमः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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