Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 4
    ऋषिः - आभूतिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - आर्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
    6

    पु॒नाति॑ ते परि॒स्रुत॒ꣳ सोम॒ꣳ सूर्य॑स्य दुहि॒ता। वारे॑ण॒ शश्व॑ता॒ तना॑॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒नाति॑। ते॒। प॒रिस्रुत॒मिति॑ परि॒ऽस्रुत॑म्। सोम॑म्। सूर्य्य॑स्य। दु॒हि॒ता। वारे॑ण। शश्व॑ता तना॑ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनाति ते परिस्रुतँ सोमँ सूर्यस्य दुहिता । वारेण शश्वता तना ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनाति। ते। परिस्रुतमिति परिऽस्रुतम्। सोमम्। सूर्य्यस्य। दुहिता। वारेण। शश्वता तना॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे राष्ट्रवासी जन ! (सूर्यस्य दुहिता) सूर्य के समान तेजस्वी ज्ञानी पुरुष की (दुहिता) समस्त ज्ञानरस को दोहन करने वाली, श्रद्धा, सत्यधारणा ही (ते) तेरे ( परिस्रुतम् ) सब प्रकार से अभिषिक्त (सोमम् ) ऐश्वर्यवान् राजा को ( शश्वता ) अनादि, नित्य से चले आये, (तना) विस्तृत, (वारेण) शत्रु के वारण करने हारे मौल बल, या वरण करने योग्य ऐश्वर्य से ( पुनाति ) पवित्र, शुद्ध, शत्रुरहित निष्कण्टक करती है । शत० १३ । ७।३ । ११ ॥ सूर्य की दुहिता 'उषा', वरणीय प्रकार से सोम, ओषधि को पवित्र करती है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - आभूतिर्ऋषिः । सोमो देवता । आर्षीं गायत्री । षड्जः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top